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नाग वंश की उत्पत्ति कैसे हुई?

नाग वंश की उत्पत्ति कैसे हुई?

Nag Vansh Katha: कैसे शुरू हुआ नागों का वंश, कौन हैं इनका माता-पिता? जानें रोचक कथा

नाग पंचमी हर साल पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है। यह त्योहार नाग देवताओं की पूजा का खास अवसर होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नाग वंश की शुरुआत कैसे हुई? और कौन थे इनके माता-पिता? आइए जानते हैं इस पौराणिक कथा के बारे में।

नाग वंश की उत्पत्ति कद्रू और महर्षि कश्यप से

महाभारत में वर्णित है कि महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियां थीं। इनमें से एक प्रमुख पत्नी थी कद्रू। कद्रू ने महर्षि कश्यप की बहुत सेवा की, जिससे वे प्रसन्न हुए और उसे वरदान देने की इच्छा हुई। कद्रू ने वरदान में एक हजार तेजस्वी नाग पुत्रों की मांग की। महर्षि कश्यप ने यह वरदान दिया, और यहीं से नाग वंश की शुरुआत हुई।

पृथ्वी को धारण करने वाले प्रमुख नाग

कद्रू के पुत्रों में शेषनाग सबसे बड़े और खास थे। वे भगवान विष्णु के परम भक्त माने जाते हैं। शेषनाग ने ब्रह्माजी की कठोर तपस्या कर उनसे वरदान माँगा कि उनकी बुद्धि, धर्म, तपस्या और शांति सदा बनी रहे। ब्रह्माजी ने कहा कि पृथ्वी स्थिर नहीं रहती, इसे स्थिर करने के लिए इसे अपने सिर पर धारण करो। शेषनाग ने यह जिम्मेदारी उठाई और अपनी पूंछ से पृथ्वी को संभाल रखा।

वासुकि - नागों के राजा

शेषनाग के बाद वासुकि श्रेष्ठ नाग माने गए। उन्हें नागों का राजा माना जाता है। भगवान शिव के गले में जो नाग लिपटा होता है, वह वासुकि है। वासुकि का नाम कई धार्मिक ग्रंथों में नागों के प्रमुख राजा के रूप में आता है। इनके साथ ही पद्मनाभ, कम्बल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक, कालिया आदि भी नाग वंश के महत्वपूर्ण सदस्य हैं।

जरत्कारू और आस्तिक मुनि

नागों की एक बहन भी थी, जिसका नाम जरत्कारू था, जिन्हें मनसादेवी के नाम से भी जाना जाता है। उनका विवाह ऋषि जरत्कारू से हुआ, जिनसे आस्तिक मुनि पैदा हुए। आस्तिक मुनि ने नाग वंश के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आस्तिक मुनि ने रोका नागदाह यज्ञ

महाभारत में कहा गया है कि अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को तक्षक नाग ने काट लिया था। उनके पुत्र जनमेजय ने इस घटना का बदला लेने के लिए एक विशाल नागदाह यज्ञ कराया, जिसमें हजारों नाग जल गए। यज्ञ से भयभीत तक्षक नाग देवताओं के स्वर्ग में जाकर छिप गया। नागों के पूर्ण नाश को रोकने के लिए आस्तिक मुनि ने राजा जनमेजय से प्रार्थना की और यज्ञ रोकवाया। इसलिए कहा जाता है कि जो आस्तिक मुनि का नाम लेकर स्मरण करता है, उसे सांप कभी नहीं काटते।

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श्रावण मास की पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में सावन मास का विशेष महत्व होता है। सावन को श्रावण मास के नाम से भी जाना जाता है, जो एक बेहद पवित्र और आध्यात्मिक महत्व वाला महीना है। पंचांग के अनुसार, इस साल यह पवित्र महीना 11 जुलाई से शुरू हो रहा है जिसका समापन 9 अगस्त को होगा।

सावन व्रत का महत्व और लाभ

सावन का महीना आते ही हर शिव भक्त में एक अलग ही भक्ति की लहर दौड़ जाती है। पूरे महीने भगवान शिव की पूजा, व्रत और रुद्राभिषेक का विशेष महत्व होता है। खासकर सोमवार के दिन, जिसे 'सावन सोमवार' कहा जाता है, लाखों श्रद्धालु शिवलिंग पर जल अर्पित कर व्रत रखते हैं।

सावन में रुद्राभिषेक का महत्व

हिंदू धर्म में श्रावण मास का विशेष महत्त्व होता है, खासकर भगवान शिव की पूजा के लिए। इस पवित्र महीने में शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, घी आदि पंचामृत से अभिषेक करने की परंपरा को रुद्राभिषेक कहा जाता है।

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