श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाला नारली पूर्णिमा का पर्व विशेष रूप से समुद्र से जुड़े समुदायों, विशेषकर मछुआरों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह पर्व भगवान वरुण को समर्पित है, जो जल के देवता माने जाते हैं। नारली पूर्णिमा को ‘श्रावणी पूर्णिमा’ और ‘कोकोनट फुल मून’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन समुद्र में नारियल अर्पित कर उसकी शांतता और कृपा की कामना की जाती है।
वर्ष 2025 में नारली पूर्णिमा का पर्व 9 अगस्त, शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि का संयोग बन रहा है, जो समुद्र पूजन और मछुआरा समाज की परंपराओं के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस दिन सुबह से ही भक्तजन और मछुआरे समुद्र तटों पर एकत्र होते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
नारली पूर्णिमा के दिन पूजा करने के लिए दो विशेष शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। इन दोनों समयों में समुद्र देवता को नारियल अर्पित करना विशेष फलदायी माना जा रहा है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें तो नारली पूर्णिमा का यह पर्व हजारों वर्षों से प्रचलित है। इसे ‘श्रावणी पूर्णिमा’ भी कहा जाता है, और यह वैदिक काल से ही ‘ऋषि पूजन’, ‘यज्ञोपवीत संस्कार’ और ‘जल देवता’ की पूजा के रूप में देखा जाता रहा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन ऋषियों ने समुद्र तट पर यज्ञ कर वरुण देवता को प्रसन्न किया था ताकि वर्षा हो और धरती पर हरियाली लौटे।
यह पर्व समुद्र से जुड़े समुदायों द्वारा वर्ष भर की समुद्री यात्रा की सफलता और सुरक्षा की कामना के लिए मनाया जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन नारियल चढ़ाने से समुद्र शांत रहता है और नाविकों को किसी प्रकार की बाधा का सामना नहीं करना पड़ता। यह पर्व वरुण देव की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है, जिनका संबंध जल, वर्षा और समृद्धि से जुड़ा हुआ है।