श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि भारतीय संस्कृति में अत्यंत विशेष मानी जाती है। यह दिन एक ओर जहां भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक रक्षा बंधन के रूप में मनाया जाता है, वहीं दूसरी ओर समुद्र से जुड़ी मान्यताओं और समुद्र देवता वरुण की आराधना के पर्व नारली पूर्णिमा के रूप में भी इसे मनाया जाता है। यह संयोग महज तिथि का नहीं, बल्कि गहरी सांस्कृतिक परंपराओं और विविध भारतीय समाजों की आस्थाओं का प्रतीक है।
श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को ही रक्षा बंधन का पर्व भी मनाया जाता है, जिसमें बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस प्रकार नारली पूर्णिमा और रक्षा बंधन दोनों ही रक्षार्थ, मंगल कामनाओं और श्रद्धा के प्रतीक हैं। एक ओर जहां बहनें अपने भाई की रक्षा की प्रार्थना करती हैं, वहीं समुद्र तटों पर मछुआरे समुद्र से अपने रक्षक भाव में कृपा की कामना करते हैं।
नारली पूर्णिमा केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, यह तटीय क्षेत्रों के सामाजिक जीवन का भी अभिन्न हिस्सा है। पुरुष पारंपरिक वस्त्र पहनकर समुद्र की ओर जाते हैं, पूजा करते हैं और फिर नारियल को समुद्र में प्रवाहित करते हैं। महिलाएं भी इस दिन व्रत रखती हैं और घर में विशेष पकवान बनाती हैं। साथ ही, परिवार की सुख-शांति के लिए प्रार्थना करती हैं।
समुद्र में नारियल चढ़ाकर वे सुरक्षित यात्रा, अनुकूल मौसम और मछली पकड़ने में सफलता की कामना करते हैं। इस प्राचीन परंपरा का मूल उद्देश्य प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाना और समुद्र की अपार शक्ति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना है। यह एक प्रकार की जल पूजा है, जिसमें समुद्र से जुड़े लोगों की आस्था और समर्पण झलकता है।