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नरसिंह जयंती कथा

नरसिंह जयंती कथा

Narsingh Jayanti Katha: नरसिंह जयंती की कथा, जब अधर्म पर धर्म की हुई थी विजय


नरसिंह जयंती, भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह के प्रकट होने की तिथि है, जो भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए प्रकट हुए थे और दैत्यराज हिरण्यकश्यप का वध किया था। यह दिन वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है, जो इस वर्ष रविवार, 11 मई को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन की पूजा से भक्तों को मानसिक शांति, भय से मुक्ति और जीवन में सकारात्मकता की प्राप्ति होती है।


हिरण्यकश्यप ने की थी कठोर तपस्या 

पद्मपुराण और भागवत महापुराण के अनुसार, कश्यप ऋषि और दिति के पुत्र हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप अत्यंत बलशाली और अहंकारी थे। हिरण्याक्ष के वध के बाद हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से कठोर तपस्या करके यह वरदान प्राप्त किया कि उसे न कोई देवता, न कोई असुर, न कोई मनुष्य, न कोई पशु, न दिन में, न रात में, न घर में, न बाहर, न अस्त्र से, न शस्त्र से मारा जा सकेगा। भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्ति के बाद वह अहंकार में चूर हो गया और स्वयं को भगवान मानने लगा। उसने प्रजा से अपनी पूजा करने का आदेश दिया और जो उसकी पूजा नहीं करता, उसे दंडित किया जाता था।


भगवान विष्णु ने बचाई थी भक्त प्रह्लाद की जान

हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह अपने पिता के आदेशों का पालन करने के बजाय भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। यह बात हिरण्यकश्यप को पसंद नहीं थी। उसने प्रह्लाद को समझाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन वह नहीं माना। फिर उसने प्रह्लाद को मारने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की। 


खंभे को फाड़ कर लिया था भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार 

एक दिन हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से पूछा, ‘तुम्हारा भगवान कहां है’ तभी प्रह्लाद ने उत्तर दिया, वह हर स्थान पर हैं। इस पर हिरण्यकश्यप ने महल के खंभे पर प्रहार किया। तभी उस खंभे से भगवान नरसिंह प्रकट हुए, जो आधा मनुष्य और आधा सिंह का रूप थे। फिर उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपनी जांघ पर लिटाया और अपने नाखूनों से उसका वध किया। इस प्रकार भगवान ने अपने भक्त की रक्षा की और असत्य पर सत्य की विजय स्थापित की।


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