भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं, इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हुए करवट बदलते हैं। इसी तिथि से जुड़ी है राजा बलि और वामन देव की अद्भुत कथा। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार, एक छोटे से ब्राह्मण बालक का रूप लिया था भगवान विष्णु ने और तीन पग भूमि माँगी थी। इसलिए इस एकादशी का व्रत बहुत महत्व रखता है, साथ ही समर्पण की सीख भी देता है।
त्रेतायुग में राजा बलि एक बलशाली असुर हुआ करता था। वह वेदों का ज्ञाता था। साथ ही, ब्राह्मणों से यज्ञ कराता और भगवान विष्णु की भक्ति करता था। उसने इतना पुण्य कमाया कि देवताओं तक को पीछे छोड़ दिया और स्वर्गलोक पर अधिकार पा लिया। देवता भयभीत हो उठे फिर वे भगवान विष्णु के द्वार पहुँचे और रक्षा की गुहार लगाई।
देवतों की गुहार सुन कर भगवान विष्णु मुस्कुराए और समझ गए की पांचवां अवतार का समय आ गया है। फिर हुआ उनका वामन रूप अवतार, नन्हा ब्राह्मण, शांत चेहरा और तेजस्वी आँखों वाला। उसके बाद वामन भगवान बलि के यज्ञ में पहुँचे और क्योंकि राजा बलि दानी और भक्त था इसलिए उसने वामन भगवान से पूछा, ‘मांगो ब्राह्मण देव, क्या चाहिए?’
वामन बोले, मुझे बस तीन पग भूमि चाहिए। सभी हंस पड़े पर बलि ने जल डालकर संकल्प लिया और वचन दे दिया, तभी वामन देव का आकार बदलने लगा। पहले पग में स्वर्ग लोक माप लिया। दूसरे में पृथ्वी और फिर पुछा अब तीसरा पग ?
बलि ने सिर झुका कर मुस्कुराया और कहा ‘भगवान, तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए।’ फिर वामन भगवान ने पैर रखा और बलि पाताल लोक चला गया।
उन्होंने बलि को वरदान दिया ‘तुम पाताल के स्वामी रहोगे, और हर वर्ष मेरी शैय्या परिवर्तन के दिन तुम्हारी कथा सुनी जाएगी।’ तभी से इस दिन परिवर्तिनी एकादशी मनाई जाती है। भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा में करवट बदलते हैं।