पितृपक्ष में प्रतिदिन किसी न किसी तिथि का विशेष महत्व होता है। पूर्णिमा और प्रतिपदा के बाद अब 9 सितम्बर 2025, मंगलवार को द्वितीया श्राद्ध मनाया जाएगा। इसे दूज श्राद्ध भी कहा जाता है। यह दिन उन पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए महत्वपूर्ण है जिनका देहांत द्वितीया तिथि को हुआ हो।
ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस दिन के श्राद्ध और तर्पण के शुभ समय इस प्रकार हैं—
इन्हीं समयावधियों में श्राद्ध और तर्पण करने का महत्व बताया गया है।
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि श्राद्ध केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि कृतज्ञता का भाव है। द्वितीया श्राद्ध खासतौर पर उन लोगों के लिए है जो द्वितीया तिथि को दिवंगत हुए। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष – दोनों ही तिथियों का श्राद्ध किया जा सकता है।
पौराणिक मान्यता है कि इस श्राद्ध से पितरों की आत्मा प्रसन्न होती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देकर परिवार से नकारात्मकता, संकट और आर्थिक बाधाओं को दूर करते हैं।
गरुड़ पुराण और पद्म पुराण में वर्णन है कि श्राद्ध के बिना पितरों की आत्मा संतुष्ट नहीं होती और वे वंशजों से अपेक्षा रखते हैं। जब संतान विधिपूर्वक तर्पण करती है तो पितृलोक में उन्हें शांति मिलती है। इस कारण हर तिथि का श्राद्ध विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है।