हिन्दू पंचांग में पितृपक्ष को पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए विशेष महत्व दिया गया है। हर तिथि का श्राद्ध अपने आप में खास माना जाता है। इसी क्रम में 13 सितम्बर 2025, शनिवार को पितृपक्ष का सप्तमी श्राद्ध मनाया जाएगा। इसे उन सभी पितरों की स्मृति और तृप्ति के लिए किया जाता है जिनका देहांत सप्तमी तिथि को हुआ हो।
धर्मशास्त्रों के अनुसार, सप्तमी तिथि को देह त्यागने वाले मृतकों का श्राद्ध इस दिन किया जाना चाहिए। चाहे वह शुक्ल पक्ष की सप्तमी हो या कृष्ण पक्ष की, इस दिन विधिपूर्वक तर्पण और पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्राद्ध केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह पितरों के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा प्रकट करने का माध्यम है। मान्यता है कि इससे पितृ प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं और परिवार की बाधाओं को दूर करते हैं।
इस वर्ष सप्तमी श्राद्ध के शुभ समय इस प्रकार हैं—
धार्मिक मान्यता है कि कुतुप, रौहिण और अपराह्न काल में किया गया श्राद्ध सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करता है।
गरुड़ पुराण और अन्य धर्मग्रंथों में कहा गया है कि पितरों की तृप्ति के बिना देवताओं की पूजा भी अधूरी रहती है। इसीलिए पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व है। सप्तमी श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर परिवार को सुख-समृद्धि और संतान को दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं।