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पितृपक्ष 2025 सप्तमी श्राद्ध मुहूर्त

पितृपक्ष 2025 सप्तमी श्राद्ध मुहूर्त

Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष का सप्तमी श्राद्ध, इस मुहूर्त में करें तर्पण और श्राद्ध कर्म की विधि

हिन्दू पंचांग में पितृपक्ष को पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए विशेष महत्व दिया गया है। हर तिथि का श्राद्ध अपने आप में खास माना जाता है। इसी क्रम में 13 सितम्बर 2025, शनिवार को पितृपक्ष का सप्तमी श्राद्ध मनाया जाएगा। इसे उन सभी पितरों की स्मृति और तृप्ति के लिए किया जाता है जिनका देहांत सप्तमी तिथि को हुआ हो।

सप्तमी श्राद्ध का महत्व

धर्मशास्त्रों के अनुसार, सप्तमी तिथि को देह त्यागने वाले मृतकों का श्राद्ध इस दिन किया जाना चाहिए। चाहे वह शुक्ल पक्ष की सप्तमी हो या कृष्ण पक्ष की, इस दिन विधिपूर्वक तर्पण और पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

श्राद्ध केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह पितरों के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा प्रकट करने का माध्यम है। मान्यता है कि इससे पितृ प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं और परिवार की बाधाओं को दूर करते हैं।

सप्तमी श्राद्ध का मुहूर्त

इस वर्ष सप्तमी श्राद्ध के शुभ समय इस प्रकार हैं—

  • कुतुप मुहूर्त: 11:28 एएम से 12:18 पीएम (49 मिनट)
  • रौहिण मुहूर्त: 12:18 पीएम से 01:07 पीएम (49 मिनट)
  • अपराह्न काल: 01:07 पीएम से 03:35 पीएम (2 घण्टे 28 मिनट)
  • सप्तमी तिथि प्रारंभ: 13 सितम्बर, सुबह 7:53 बजे
  • सप्तमी तिथि समाप्त: 14 सितम्बर, सुबह 5:34 बजे

धार्मिक मान्यता है कि कुतुप, रौहिण और अपराह्न काल में किया गया श्राद्ध सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करता है।

श्राद्ध और तर्पण की विधि

  • प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें और पवित्र आसन पर बैठें।
  • दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों का ध्यान करें।
  • जल, तिल और कुश से तर्पण करें और पिंडदान के लिए चावल, जौ और तिल का प्रयोग करें।
  • ब्राह्मणों को भोजन कराना और दक्षिणा देना श्राद्ध का आवश्यक अंग है।
  • अंत में गाय, कुत्ते, कौवे और चींटियों को अन्न अर्पित करना चाहिए, क्योंकि इन्हें पितरों का प्रतीक माना गया है।

पौराणिक मान्यता

गरुड़ पुराण और अन्य धर्मग्रंथों में कहा गया है कि पितरों की तृप्ति के बिना देवताओं की पूजा भी अधूरी रहती है। इसीलिए पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व है। सप्तमी श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर परिवार को सुख-समृद्धि और संतान को दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं।

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