Pitru Paksha Hawan Vidhi 2025: हिंदू धर्म में पितृपक्ष का समय विशेष महत्व रखता है, जो पूर्वजों को समर्पित माना जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से हो रही है। हिंदू धर्म में इसे पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए विशेष महत्व दिया गया है। बता दें कि यह काल 16 दिनों का होता है और इस दौरान पितरों का पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। मान्यता है कि पितृपक्ष में इन नियमपूर्वक इन कार्यों को करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि इन नियमों को करने के लिए पुरोहित उपलब्ध नहीं होते। ऐसे में लोग सोचते हैं कि विधिपूर्वक घर पर तर्पण-हवन कैसे किया जाए। तो चलिए जानते हैं कि पितृपक्ष 2025 में घर पितरों का हवन करने की विधि और पूजन विधि क्या है...
पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध या तर्पण करने से पहले आवश्यक सामग्री रख लें। इन सामग्रियों में चावल, जनेऊ, कपूर, हल्दी, शहद, पान का पत्ता, जौ, छोटी सुपारी, गुड़, तिल, गंगाजल, खजूर, दही, उड़द, गाय का दूध, हवन सामग्री, घी,दही, उड़द, खजूर, मुंग, गन्ना, रोली, जनेऊ, रुई, रक्षा सूत्र विशेष महत्व माना गया है। इन सामग्रियों के बिना विधि पूर्ण नहीं मानी जाती है। ध्यान रखें कि पितरों की तस्वीर को कभी भी देवी-देवताओं की तस्वीर के साथ न रखें। पितृकर्म शुरू करने से पहले भगवान की पूजा करना आवश्यक होता है, क्योंकि बिना देवपूजन के पितृकर्म करना अधूरा माना जाता है।
सनातन धर्म में यह मान्यता है कि पितृगण की तृप्ति और अपने कल्याण के लिए श्राद्ध एवं तर्पण अनिवार्य हैं। लेकिन यह तभी सफल और फलदायी होता है जब इसे विधि-विधान से अग्नि में वैदिक मंत्रों के साथ आहुतियां भी दी जाएं। शास्त्रों में वर्णित है कि जब अग्नि में वैदिक मंत्रों के साथ आहुतियां डाली जाती हैं तो वह धूम्र और वायु के माध्यम से सूर्य मण्डल तक पहुंचती हैं। वहां से उसका एक भाग सूर्य किरणों द्वारा पितृलोक तक पहुंचकर पितरों को प्रसन्न करता है।
इसलिए श्राद्ध के दिन सबसे पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें और आचमन, प्राणायाम तथा कुश धारण कर संकल्प लें। इसके बाद संस्कारपूर्वक अग्नि स्थापना करें और मंत्रोच्चार के साथ अग्नि प्रज्ज्वलित कर ध्यान करें। अग्नि को पंचोपचार (गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य) से पूजित करें और उसमें चावल, तिल, घी, गुड़, शक्कर, सुगंधित द्रव्य तथा जल मिलाकर कम से कम 14 आहुतियां अर्पित करें। हवन की समाप्ति के बाद हवनकुंड से प्राप्त भस्म को माथे और अंगों पर लगाकर पवित्रता ग्रहण करें। उसके बाद गंध, अक्षत, पुष्प और मंत्रोच्चार से अग्नि का पूजन कर विधिपूर्वक विसर्जन करें। आखिरी में आत्मा की शान्ति के मंत्रों का जाप करें। मंत्र इस प्रकार है -
ॐ यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या
तपोश्राद्ध क्रियादिषु।
न्यूनं सम्पूर्णताम् याति
सद्यो वंदेतमच्युतम।।