ज्योतिष और पुराणों में पितृदोष को एक बड़ा दोष माना गया है। आम तौर पर लोग इसे पूर्वजों की आत्मा की अशांति या उनकी नाराजगी से जोड़ देते हैं, लेकिन असलियत थोड़ी गहरी है। पितृदोष का अर्थ यह नहीं है कि हमारे पूर्वज हमें कष्ट देने के लिए पितृलोक से वापस आ रहे हैं। इसका सीधा अर्थ है कि हमारे परिवार की पिछली पीढ़ियों के अधूरे काम, उनके कर्मफल और कुछ गलतियों का असर हमारी वर्तमान पीढ़ी पर दिखाई देता है। यह असर कभी संतान सुख में बाधा, कभी पैसों की दिक्कत, तो कभी परिवार में झगड़ों के रूप में सामने आता है।
पितृदोष के कई कारण हो सकते हैं। मान्यता है कि यदि पूर्वजों की मृत्यु के बाद उनका श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान ठीक से न किया जाए तो उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलती और यह अशांति वंशजों पर असर डालती है। इसके अलावा कुछ गलत कर्म जैसे बुजुर्गों का अनादर करना, उनकी सेवा न करना, जरूरतमंदों को दुख पहुंचाना या वंश परंपरा में चले आ रहे अधूरे कर्म भी पितृदोष का कारण माने जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार यदि जन्मकुंडली में सूर्य और राहु का मेल होता है या कुछ विशेष योग बनते हैं तो भी इसे पितृदोष कहा जाता है।
कहा जाता है कि जब किसी परिवार पर पितृदोष होता है तो उसके लक्षण साफ नजर आते हैं। जैसे कि –
ये लक्षण संकेत देते हैं कि पूर्वज किसी कारण से तृप्त नहीं हैं और वंशजों से उन्हें श्राद्ध और तर्पण की अपेक्षा है।
शास्त्रों में पितृदोष से मुक्ति के लिए सबसे अधिक प्रभावी उपाय श्राद्ध और तर्पण को बताया गया है। पितृपक्ष के दिनों में गंगा जल से तर्पण करना, ब्राह्मणों को भोजन कराना, गरीबों और गौ सेवा करना पितृदोष को शांत करने में सहायक माना गया है। इसके अलावा गया जी में पिंडदान का विशेष महत्व है, जहां परंपरा के अनुसार एक बार श्राद्ध करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।
ज्योतिष के अनुसार भी सूर्य को जल चढ़ाना, रविवार को व्रत करना और राहु-केतु दोष शांति के लिए उपाय करना पितृदोष के प्रभाव को कम करता है। सबसे जरूरी बात यह है कि घर के बुजुर्गों का सम्मान करें और उनकी सेवा करें। यही वह कर्म है जिससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं और वंशजों पर आशीर्वाद बरसाते हैं।