सनातन परंपरा में पितृपक्ष के हर दिन का अलग महत्व माना गया है। पूर्णिमा श्राद्ध से शुरुआत के बाद 8 सितम्बर 2025, सोमवार को प्रतिपदा श्राद्ध किया जाएगा। इसे पड़वा श्राद्ध भी कहते हैं। यह दिन खासतौर पर उन पितरों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित है, जिनका देहांत प्रतिपदा तिथि को हुआ हो।
ज्योतिष गणना के अनुसार इस दिन के श्राद्ध और तर्पण के शुभ समय इस प्रकार रहेंगे—
इन मुहूर्तों को श्राद्ध कर्म और तर्पण के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
धर्मग्रंथों में प्रतिपदा श्राद्ध को विशेष स्थान दिया गया है। कहा गया है कि इस तिथि पर यदि किसी को अपने नाना-नानी की पुण्यतिथि ज्ञात न हो तो उनका श्राद्ध करना अत्यंत शुभ माना जाता है। मातृ पक्ष के पितरों की तृप्ति के लिए यह दिन सर्वोत्तम है। मान्यता है कि प्रतिपदा श्राद्ध करने से नाना-नानी की आत्मा प्रसन्न होती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।
इसी कारण इस श्राद्ध को पड़वा श्राद्ध भी कहा जाता है। शास्त्रों में उल्लेख है कि प्रतिपदा तिथि पर किया गया तर्पण घर में सुख-समृद्धि लाता है और वंश वृद्धि में आने वाली बाधाओं को दूर करता है।
विष्णु धर्मसूत्र और गरुड़ पुराण में बताया गया है कि श्राद्ध करने वाला व्यक्ति केवल अपने पूर्वजों को ही संतुष्ट नहीं करता, बल्कि देवताओं और ऋषियों को भी प्रसन्न करता है। प्रतिपदा श्राद्ध का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह पितृपक्ष की नियमितता और निरंतरता का प्रतीक है।