अमावस्या की तिथि पितरों के तर्पण और उनकी पूजा-अर्चना के लिए शुभ मानी जाती है। जब अमावस्या किसी सोमवार को पड़ती है, तो इसे 'सोमवती अमावस्या' कहते हैं। सनातन धर्म में इस दिन का महत्व बहुत अधिक है। पवित्र नदियों में स्नान, गरीबों को दान और भगवान शिव की पूजा करना इस दिन अत्यंत फलदायी माना जाता है। यह व्रत रखने और पूजा-अर्चना करने से पापों का नाश होता है। साथ ही सुख-शांति और समृद्धि भी प्राप्त होती है। तो आइए इस आलेख में अमावस्या के महत्व और शुभ मुहूर्त के बारे में विस्तार से जानते हैं।
साल 2024 में अंतिम सोमवती अमावस्या पौष मास में पड़ रही है। यह शुभ दिन 30 दिसंबर को सोमवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन पौष अमावस्या का पर्व भी रहेगा। इस अवधि के दौरान श्रद्धालु स्नान-दान और पूजा करके पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।
सोमवती अमावस्या का दिन आध्यात्मिक ऊर्जा और पुण्य कर्मों का प्रतीक है। इस दिन भगवान शिव की पूजा, पितरों का तर्पण और गरीबों की सहायता करने से जीवन में शुभ फल प्राप्त होते हैं। जो भी श्रद्धालु इस दिन व्रत रखते हैं और विधिपूर्वक पूजा करते हैं, उन्हें भगवान शिव और उनके पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
सोमवती अमावस्या का दिन भगवान शिव की पूजा और व्रत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। शिवभक्तों का मानना है कि इस दिन शिवलिंग पर जल अर्पित करने और रात्रि जागरण करने से पापों का नाश होता है। इसके साथ ही जीवन में सुख और शांति का आगमन होता है। इस दिन व्रत रखने वाले श्रद्धालु पूरे दिन निर्जल या फलाहार करते हैं और भगवान शिव का ध्यान करते हैं। रात के समय भजन-कीर्तन और जागरण का आयोजन किया जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र अर्पित करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
पौष मास में पड़ने वाली अमावस्या को पौष अमावस्या कहा जाता है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। सूर्यदेव को अर्घ्य देकर जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया जा सकता है। पौष अमावस्या और सोमवती अमावस्या का संयोग इस वर्ष विशेष फलदायी माना जा रहा है।
साल 2025 में चंद्र ग्रहण के बाद अब लोगों की निगाहें सूर्यग्रहण पर टिक गई हैं। यह साल का पहला सूर्यग्रहण होगा। इसे लेकर धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार विशेष सतर्कता बरती जानी चाहिए।
सूर्यग्रहण.... एक सुंदर और अद्भुत खगोलीय घटना है, जब ब्रह्मांड एक अनोखा दृश्य प्रस्तुत करता है।
तैत्तिरीय उपनिषद में अन्न को देवता कहा गया है- अन्नं ब्रह्मेति व्यजानत्। साथ ही अन्न की निंदा और अवमानना का निषेध किया गया है- अन्नं न निन्द्यात् तद् व्रत। ऋग्वेद में अनेक अनाजों का वर्णन है I
गुड़ी पड़वा का पर्व हिंदू नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। यह त्योहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है, जो इस साल 30 मार्च को पड़ रहा है।