हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी को धन, वैभव, सौभाग्य और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए वर्षभर कई व्रत-उपवास रखे जाते हैं, जिनमें वरलक्ष्मी व्रत का विशेष स्थान है। यह पर्व मुख्य रूप से दक्षिण भारत के तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में बड़े श्रद्धाभाव से मनाया जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, वरलक्ष्मी व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। 2025 में यह तिथि 8 अगस्त, शुक्रवार को पड़ रही है, जो व्रत के लिए अति शुभ मानी गई है।
इस दिन प्रातःकाल स्नान के बाद देवी लक्ष्मी की पूजा करने की परंपरा है। पूजा का श्रेष्ठ समय प्रदोष काल अथवा दिन में शुभ मुहूर्त होता है। विशेष रूप से विवाहित महिलाएं इस दिन व्रत रखकर देवी लक्ष्मी से अपने परिवार के सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना करती हैं।
वरलक्ष्मी व्रत को लक्ष्मी जी के आठ रूपों जैसे धन, धान्य, संतति, वीर्य, विजया, विद्युत, भाग्य और ऐश्वर्य की आराधना के रूप में मनाया जाता है। इसे ‘अष्टलक्ष्मी पूजन’ भी कहा जाता है।
शास्त्रों में वर्णन है कि इस दिन व्रत रखने से पति की आयु लंबी होती है, संतान सुख मिलता है और घर में सुख-शांति बनी रहती है। दक्षिण भारत में इसे करवा चौथ के समान ही माना जाता है, जहां महिलाएं पति की समृद्धि और परिवार की खुशहाली के लिए यह व्रत करती हैं।