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वर लक्ष्मी व्रत की कथा

वर लक्ष्मी व्रत की कथा

Varalakshmi Vrat Katha: वरलक्ष्मी व्रत के दिन करें इस कथा का पाठ, कभी नहीं होगी धन की कमी 

वरलक्ष्मी व्रत हिन्दू धर्म में माता लक्ष्मी को समर्पित एक विशेष व्रत है, जिसे विशेष रूप से महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि और धन वृद्धि के लिए करती हैं। यह व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुक्रवार के दिन रखा जाता है। वर्ष 2025 में वरलक्ष्मी व्रत 16 अगस्त, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं और विधि पूर्वक माता लक्ष्मी की पूजा करती हैं।

वरलक्ष्मी व्रत की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में मगध देश के कुंडी नामक नगर में चारुमति नाम की एक पतिव्रता स्त्री रहती थी। वह अत्यंत धार्मिक स्वभाव की थी और अपने सास, ससुर, पति और परिवार की सेवा करती थी। साथ ही, वह माता लक्ष्मी की परम भक्त भी थी। एक रात चारुमति को स्वप्न में माता लक्ष्मी ने दर्शन दिए और उसे सावन माह की पूर्णिमा से पहले शुक्रवार को वरलक्ष्मी व्रत रखने की सलाह दी।

स्वप्न के बाद चारुमति ने माता लक्ष्मी की आज्ञा का पालन करते हुए विधिपूर्वक व्रत और पूजा की। पूजा के पश्चात जब वह कलश की परिक्रमा कर रही थी, तो चमत्कार हुआ। उसके शरीर पर स्वर्ण आभूषण प्रकट हो गए और उसके घर में धन-धान्य की वर्षा होने लगी। यह देखकर परिवार और नगरवासी अचंभित हो गए। चारुमति ने यह कथा और व्रत विधि अन्य महिलाओं को भी बताई। सभी ने मिलकर व्रत रखा और उन्हें भी आर्थिक समृद्धि का लाभ मिला।

वरलक्ष्मी व्रत कथा का महत्व

यह कथा यह स्पष्ट करती है कि सच्चे मन, श्रद्धा और भक्ति से की गई पूजा का फल अवश्य मिलता है। वरलक्ष्मी व्रत करने से न केवल आर्थिक कष्टों का नाश होता है, बल्कि परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। यह व्रत स्त्रियों को अपने पतिव्रत धर्म में दृढ़ बनाता है और परिवार के कल्याण के लिए प्रोत्साहित करता है।

वरलक्ष्मी व्रत कथा पाठ के विशेष नियम

वरलक्ष्मी व्रत के दिन इस कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। माता लक्ष्मी की कृपा से जीवन में कभी धन की कमी नहीं रहती। कथा पाठ करते समय कलश स्थापना, दीपक जलाना, अक्षत, रोली, हल्दी, और चावल जैसी पूजा सामग्री का उपयोग करना चाहिए। पूजा के अंत में महिलाओं को सौभाग्य सामग्री का आदान-प्रदान भी करना चाहिए, जैसे कांच की चूड़ियां, सिंदूर और मेंहदी, जिससे आपसी स्नेह और सौहार्द बना रहता है।

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