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चैत्र नवरात्रि: मां सिद्धिदात्री की कथा

चैत्र नवरात्रि: मां सिद्धिदात्री की कथा

Maa Siddhidatri Katha: चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन जानें मां सिद्धिदात्री की कथा, इससे आपके सभी कार्य सिद्ध होते हैं

चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, जो मां दुर्गा का नौवां स्वरूप है। मां सिद्धिदात्री शब्द का अर्थ है सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी। इसीलिए मां के इस रूप की पूजा-अर्चना और साधना करने से सभी कार्यों में सिद्धि मिलती है। साथ ही, माँ की कथा सुनने से वर्षों से रुके कार्य बनने लगते हैं। तो आइए और मां सिद्धिदात्री की कथा जाने। 

भगवान शिव की थी आदि-पराशक्ति की आराधना 

जब सृष्टि का निर्माण हुआ था, तब भगवान शिव ने सृजन के कहने पर आदि पराशक्ति की तन-मन से आराधना की थी। धार्मिक कथाओं के अनुसार, आदि पराशक्ति का कोई निश्चित आकार या रूप नहीं है। मां को शक्ति की सर्वोच्च देवी माना जाता है, जो स्वयं शक्ति का प्रतीक है। भगवान शिव की आराधना से मां ने सृष्टि का विस्तार किया और वो शक्ति, ज्ञान और सिद्धि का रूप बनी, जो भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती है।

जानिए क्यों पड़ा सिद्धिदात्री नाम

मां के इस स्वरूप का नाम सिद्धिदात्री रखा गया है क्योंकि उनके पास आठ विशेष सिद्धियां हैं। इनमें अणिमा यानि सूक्ष्म रूप धारण करने की शक्ति, महिमा यानी विशाल रूप धारण करने की शक्ति, प्राप्ति यानी जो चाहो उसे पाने की शक्ति, प्राकाम्य यानी इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति, गरिमा यानी भारी या वजनी रूप धारण करने की शक्ति, लघिमा यानी हल्का या छोटा होने की शक्ति, ईशित्व अर्थात दूसरों पर शासन करने की शक्ति और वशित्व यानी सबको अपने वश में करने की शक्ति शामिल हैं। 

मां सिद्धिदात्री स्वरूप 

मां सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान होती हैं। इसके साथ ही वह सिंह की सवारी भी करती है, जो मां सिद्धिदात्री की गरिमा और शक्ति को दर्शाता है। मां के इस स्वरूप में चार भुजाएँ हैं। अपने दोनों बाएं हाथों में वह कमल का पुष्प और शंख धारण करती हैं। साथ ही, अपने दोनों दाहिने हाथों में गदा और चक्र धारण करती हैं। इससे उनका दिव्य रूप सुशोभित होता है। चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन मां दुर्गा के इस स्वरूप की विधिपूर्वक पूजा करने से आपको सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। विद्यार्थियों को मां सिद्धिदात्री की पूजा विशेष रूप से करनी चाहिए, क्योंकि इससे उन्हें करियर में सफलता जल्द ही प्राप्त होती है।

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कालाष्टमी की मंत्र जाप

कालाष्टमी पर्व भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की शक्ति और महिमा का प्रतीक है। जब भगवान शिव के क्रोध से काल भैरव का जन्म होता है। काल भैरव समय के भी स्वामी हैं।

धन्य वह घर ही है मंदिर, जहाँ होती है रामायण (Dhanya Wah Ghar Hi Hai Mandir Jahan Hoti Hai Ramayan)

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