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माता के भक्तों के लिए नवरात्रि सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। इन नौ दिनों में देश ही नहीं दुनिया भर में मैय्या रानी के जगराते और पूजन पाठ किए जाते हैं। मैय्या हर दिन एक अलग रूप में भक्तों को दर्शन देती है और भक्त भी मां के उस स्वरूप की आराधना कर अपने मन की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। भक्त वत्सल के नवरात्रि विशेषांक की श्रृंखला के नौवें लेख में हम आपको मैय्या के सातवें रूप और स्वयं शक्ति की प्रतिमा मां कालरात्रि के बारे में बताने वाले हैं। तो चलिए शुरू करते हैं मां कालरात्रि की आराधना भक्त वत्सल के माध्यम से…………
यह मैय्या का सातवां रूप है। जिसे संसार कालरात्रि के नाम से पूजता है। कालरात्रि का शाब्दिक अर्थ होता है सब को मारने वाले काल की भी रात्रि या विनाश करने वाली। यह मैय्या के रौद्र रूपों में से एक है। इस संहारक और दैत्य विनाशकारी रूप के कारण मैय्या को रौद्री और धूम्रवर्णा नाम से भी पूजा गया है। देवी कालरात्रि को काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यु-रुद्राणी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। वही विभिन्न धर्म ग्रंथों में माता महामाया को भयंकरा, कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि, श्री, ईश्वरी, ह्री और बोधस्वरूपा-बुद्धि भी कहा गया है।
घने अंधकार वाले एकदम काले वर्ण वाली मैय्या कालरात्रि अपने वर्ण में अपने नाम का भावार्थ प्रदर्शित करतीं हैं। रौद्र रूप में बिखरे बाल, गले में विद्युत सी चमकती माला के साथ मेय्या के इस स्वरूप में गुस्से से लाल तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल और विद्युत के समान चमकीले हैं ।
माँ की नासिका के हर श्वास के साथ भयंकर अग्नि ज्वालाएँ प्रकट हो रही हैं । मेय्या इस रूप में सिंह की सवारी नहीं बल्कि गर्दभ यानी गधे पर विराजमान है। दाहिना हाथ जो थोड़ा ऊपर उठा हुआ है। इससे मैय्या वरमुद्रा में सभी को वर दे रही हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। वहीं मैय्या बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग धारण किये हुए हैं। देवी इस रूप में राक्षसों, भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश करती हैं।
इस रूप में माँ गर्दभ यानी गधे पर आरूढ हैं। इसका भी एक विशेष कारण है। मैय्या इस रूप में क्रोध और रौद्र मुद्रा में है। ऐसे में सिंह की सवारी से उनका क्रोध शांत नहीं हो पाता। संहार के पश्चात सिंह की बजाय ऊर्जा के विस्फोट से रक्षा हेतु गर्दभ या गधे की सवारी श्रेष्ठ है। इसका एक आशय यह भी है कि क्रोध के बाद सभी इन्द्रियाँ किसी दास या किसी गर्दभी की तरह आज्ञाकारिणी हो कर शांत हो जाती हैं।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता | लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ||
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा | वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि ||
ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।’
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