Logo

महाकुंभ का पहला शाही स्नान

महाकुंभ का पहला शाही स्नान

Shahi Snan 2025: कब होगा कुंभ में पहला शाही स्नान, जानें इस परंपरा का इतिहास और खूनी संघर्ष की कहानी 


हिंदू धर्म के सबसे बड़े धार्मिक  आयोजन  कहे जाने वाले  महाकुंभ में अब एक महीने से भी  कम  का समय रह गया है। सभी 13 प्रमुख अखाड़े प्रयागराज पहुंच भी चुके हैं।  और पहले शाही स्नान के लिए तैयार है। बता दें कि शाही स्नान की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह कुंभ मेले का पवित्र और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसे महाकुंभ के शुरू होने का संकेत माना जाता है। 


मान्यता है कि महाकुंभ में शाही स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार का पहला शाही स्नान पौष पूर्णिमा के दिन 13 जनवरी होने वाला है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रयाग के त्रिवेणी संगम पर पहुंचेंगे और डुबकी लगाएंगे। चलिए आपको पहले शाही स्नान और  इस परंपरा का इतिहास के बारे में विस्तार से बताते हैं।


स्नान को क्यों कहा जाता है शाही ?


शाही स्नान" नाम  परंपरा को शाही वैभव और दिव्यता से जोड़ता है। पुराने समय में राजा-महाराजाओं के साथ-साथ साधु-संतों का एक भव्य जुलूस स्नान के लिए जाता था। यह जुलूस एक शाही परेड जैसा होता था, जिसके कारण इसे "शाही स्नान" कहा जाने लगा। 


पहले शाही स्नान का शुभ मुहूर्त 


पंचांग के मुताबिक पौष पूर्णिमा 13 जनवरी 2025 को सुबह 5 बजकर 3 मिनट पर शुरू होगी और  14 जनवरी 2025 को सुबह 3 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में पहला शाही स्नान 13 जनवरी सोमवार को होगा। इस दौरान  ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5 बजकर 27 मिनट से लेकर 6 बजकर 21 मिनट तक है।


शाही स्नान की प्रक्रिया 


शाही स्नान की प्रक्रिया भव्य होती है। अखाड़ों के संत और महात्मा अपने शिष्यों के साथ ढोल -नगाड़ों और पारंपरिक स्नान के लिए आते हैं। सबसे पहले साधु -संत शाही स्नान करते हैं और इसके बाद आम जनता स्नान करती हैं। इस तरह शाही स्नान कुंभ मेले का सबसे विशेष और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसे हर भक्त एक बार अपने जीवन में करने की इच्छा रखता है।


महानिर्वाणी अखाड़ा करता है पहला स्नान 


महानिर्वाणी अखाड़े को अखाड़ों में सबसे पहले शाही स्नान करने का मौका मिलता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। ऐसे करके महानिर्वाणी अखाड़ा अन्य अखाड़ा और श्रद्धालुओं के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। इसलिए अखाड़े को अत्यधिक सम्मान जनक माना जाता है। 


शाही स्नान को लेकर हुए युद्ध   


पहले शाही स्नान के अधिकार को लेकर साधुओं और अखाड़ों के बीच पुराने समय में संघर्ष और टकराव हो चुका है। 1760 में हरिद्वार महाकुंभ में जूना अखाड़ा और अन्य अखाड़ों के बीच टकराव की घटना सामने आई थी। यह विवाद शाही स्नान के क्रम को लेकर हुआ था।  वहीं 18 शताब्दी में प्रयाग कुंभ के दौरान  साधुओं के  एक समूहों ने स्नान के दौरान दूसरे अखाड़े के साधु संतों पर  हमला किया था। इसे कुंभ मेले के इतिहास का एक कठिन समय माना जाता है।


........................................................................................................
साँवरे सा कौन(Sanware Sa Kaun)

साँवरे सा कौन,
सांवरे सा कौन,

सवारिये ने भूलूं न एक घडी(Sanwariye Ne Bhule Naa Ek Ghadi)

पूरन ब्रह्म पूरन ज्ञान
है घाट माई, सो आयो रहा आनन्द

साँवरियो है सेठ, म्हारी राधा जी सेठाणी है(Sanwariyo Hai Seth Mhari Radha Ji Sethani Hai)

साँवरियो है सेठ,
म्हारी राधा जी सेठाणी है,

सपने में सखी देख्यो नंदगोपाल(Sapane Me Sakhi Dekhyo Nandgopal)

सपने में सखी देख्यो नन्दगोपाल,
सावली सूरतिया हाथो मे बाँसुरिया,

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang