हिंदू धर्म में बुधदेव का महत्वपूर्ण स्थान है। वे ज्योतिषशास्त्र में एक ग्रह के रूप में जाने जाते हैं और बुद्धि, संवाद, वाणी, गणना, व्यापार, शिक्षा और तर्क का प्रतीक माने जाते हैं। बुध को तंत्र-मंत्र, व्यवसाय, ज्ञान, मनोबल, और वाणी के देवता के रूप में पूजा जाता है। जब बुध शुभ स्थिति में होता है तो व्यक्ति में बुद्धिमत्ता, तर्कशक्ति, और समझ का विकास होता है, जिससे वह सामाजिक, मानसिक और बौद्धिक रूप से सशक्त होता है। लेकिन जब बुध अशुभ स्थिति में होता है तो यह मानसिक भ्रम, वाणी की समस्याएँ और तर्क में कमी का कारण बन सकता है। हिंदू पुराणों के अनुसार, बुध देवता का जन्म भगवान चंद्रमा और तारा देवी से हुआ था। चंद्रमा ने तारा को अपनी पत्नी के रूप में लिया था, लेकिन ब्रह्मा के आदेश पर तारा ने चंद्रमा को छोड़कर शुक्राचार्य से विवाह कर लिया। तारा के गर्भ में जो बच्चा था, वह बुध के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस कारण बुध को चंद्रमा के पुत्र के रूप में भी पूजा जाता है। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में बुधदेव की पूजा किस विधि से करनी चाहिए और पूजा सामग्री क्या है। इसके बारे में भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
बुधदेव की पूजा के लिए सामग्री के बारे में विस्तार से जान लें।
बुधदेव की पूजा से व्यक्ति की बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होती है। उनकी स्मरण शक्ति तेज होती है और वे शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं। बुधदेव की पूजा से व्यक्ति की वाणी में सुधार होता है। वे अपनी बात को स्पष्ट और प्रभावी ढंग से कहने में सक्षम होते हैं। बुधदेव को व्यापार का देवता माना जाता है। उनकी पूजा से व्यापार में सफलता प्राप्त होती है और व्यक्ति को धन लाभ होता है। बुधदेव की पूजा से व्यक्ति को मानसिक शांति प्राप्त होती है। वे तनाव और चिंता से मुक्त होते हैं।
दिवाली से ठीक एक दिन पहले यानी 30 अक्टूबर को छोटी दिवाली मनाई जाएगी। जिसे नरक चतुर्दशी, यम दिवाली, काली चौदस या रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है।
छोटी दिवाली के दिन मुख्य रूप से भगवान श्रीकृष्ण, मां काली और यमराज की पूजा करने का विधान है। इस दिन संध्या के समय यमराज को दीप अर्पित किया जाता है।
दीपावली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। हालांकि दिवाली की रोशनी से एक दिन पहले हमें अच्छाई और सच्चाई की ओर ले जाने वाला त्योहार आता है, जिसमें हम छोटी दिवाली के रूप में मनाते हैं।
छोटी दिवाली के दिन मुख्य रूप से 5 दीये जलाने का प्रचलन है। इनमें से एक दीया घर के ऊंचे स्थान पर, दूसरा रसोई में, तीसरा पीने का पानी रखने की जगह पर, चौथा पीपल के पेड़ के तने और पांचवा घर के मुख्य द्वार पर जलाना सबसे उचित माना गया है।