ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2081 तमेऽब्दे पिंगल नाम संवत्सरे दक्षिणायने हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ रविवासरे हस्त नक्षत्रे आयुष्मान योगे चतुष्पद करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें)
गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं - निमित्त महागणपति
नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।
जिस तरह सूर्यदेव के मकर राशि में प्रवेश से मकर संक्रांति मनाई जाती है। उसी तरह जिस दिन सूर्यदेव कुंभ राशि में प्रवेश कर सकते हैं, वह दिन कुंभ संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
हिंदू धर्म में, थाईपुसम एक प्रमुख त्योहार माना जाता है। यह त्योहार विशेषकर तमिल समुदाय के लोगों द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार माघ माह के पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन शंकर भगवान के बड़े पुत्र भगवान मुरुगन यानि कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
हिंदू धर्म में, सूर्य देव के राशि परिवर्तन को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। सूर्य जब दूसरे राशि में प्रवेश करते हैं, तब इसे संक्रांति कहा जाता है। दरअसल, सूर्य जिस राशि में प्रवेश कर सकते हैं, उस दिन को उसी राशि के संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
मां ललिता देवी का मंदिर देश-विदेश के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यह मंदिर 88 हजार ऋषियों की तपस्थली, वेदों और पुराणों की रचना स्थली नैमिषारण्य में स्थित है। मां ललिता देवी को त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है।