दिया थाली बिच जलता है,
ऊपर माँ का भवन बना,
नीचे गंगा जल बहता है ॥
दिया थाली बिच जलता है ।
ऊपर माँ का भवन बना,
नीचे गंगा जल बहता है ॥
माँ के माथे पे टीका है,
माँ की बिंदिया ऐसे चमके,
जैसे चाँद चमकता है ॥
दिया थाली बिच जलता है ।
ऊपर माँ का भवन बना,
नीचे गंगा जल बहता है ॥
माँ के गले में हरवा है,
माँ के झुमके ऐसे चमकें,
जैसे चाँद चमकता है ॥
दिया थाली बिच जलता है ।
ऊपर माँ का भवन बना,
नीचे गंगा जल बहता है ॥
माँ के हाथों में चूड़ियां है,
माँ के कंगन, मेंहदी ऐसे चमके
जैसे चाँद चमकता है ॥
दिया थाली बिच जलता है ।
ऊपर माँ का भवन बना,
नीचे गंगा जल बहता है ॥
मां के पैरों में पायल हैं,
मां के बिछुए ऐसे चमके,
जैसे चाँद चमकता है ॥
दिया थाली बिच जलता है ।
ऊपर माँ का भवन बना,
नीचे गंगा जल बहता है ॥
माँ के अंग पे साड़ी है,
माँ की चुनरी ऐसे चमके,
जैसे चाँद चमकता है ॥
दिया थाली बिच जलता है ।
ऊपर माँ का भवन बना,
नीचे गंगा जल बहता है ॥
भगवान् कृष्ण के मुखरबिन्द से इतनी कथा सुनकर पाण्डुनन्दन महाराज युधिष्ठिर ने उनसे कहा - हे भगवन् ! आपकी अमृतमय वाणी से इस कथा को सुना परन्तु हृदय की जिज्ञासा नष्ट होने के बजाय और भी प्रबल हो गई है।
इतनी कथा सुनने के बाद महाराज युधिष्ठिर ने पुनः भगवान् कृष्ण से हाथ जोड़कर कहा-हे मधुसूदन । अब आप कृपा कर मुझ ज्येष्ठ मास कृष्ण एकादशी का नाम और मोहात्म्य सुनाइये क्योंकि मेरी उसको सुनने की महान् अच्छा है।
एक समय महर्षि वेद व्यास जी महाराज युधिष्ठिर के यहाँ संयोग से पहुँच गये। महाराजा युधिष्ठिर ने उनका समुचित आदर किया, अर्घ्य और पाद्य देकर सुन्दर आसन पर बिठाया, षोडशोपचार पूर्वक उनकी पूजा की।
युधिष्ठिर ने कहा कि हे श्री मधुसूदन जी ! ज्येष्ठ शुक्ल की निर्जला एकादशी का माहात्म्य तो मैं सुन चुका अब आगे आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है और क्या माहात्म्य है कृपाकर उसको कहने की दया करिये।