श्री रामायण प्रारम्भ स्तुति,
जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन ॥
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ॥ 1 ॥
मूक होइ बाचाल पंगु चढइ गिरिबर गहन ॥
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन ॥ 2 ॥
नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन ॥
करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन ॥ 3 ॥
कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन ॥
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन ॥ 4 ॥
बंदउ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि ॥
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर ॥ 5 ॥
श्री राम की बड़ी बहन शांता, जिन्हें उनकी मौसी ने ले लिया था गोद
यम के पुत्र थे इसलिए धर्मराज कहलाए युधिष्ठिर, जीवनभर सत्य बोला फिर भी एक झूठ बोलने के लिए भोगना पड़ा नर्क
अहंकारी गंधर्व और शूद्र मनुष्य के बाद ब्रह्मा के मानस पुत्र के रूप में जन्में देवर्षि नारद, राजा दक्ष के श्राप के कारण भटकते थे
माता अनुसुइया को मिले वरदान से जन्मे दत्तात्रेय भगवान, माता की प्रार्थना से 6-6 माह के बालक बन गए थे त्रिदेव