अंत्येष्टि संस्कार हिन्दू धर्म का एक अभिन्न अंग है। जो ना केवल मृतक को मोक्ष प्रदान करता है। बल्कि, परिवार और समाज को भी जीवन और मृत्यु के चक्र के प्रति जागरूक करता है। यह संस्कार आत्मा की अंतिम यात्रा को सम्मान और श्रद्धा के साथ पूरा करता है और मृतक की स्मृति को जीवित रखता है। हिन्दू धर्म में अंत्येष्टि संस्कार का गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। शास्त्रों में इसे मोक्ष प्राप्ति का एक प्रमुख माध्यम भी माना गया है। तो आइए, इस आर्टिकल में अंत्येष्टि संस्कार के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं।
सनातन हिंदू धर्म के अनुसार बिना अंत्येष्टि संस्कार के बिना आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। इसलिए, अंत्येष्टि संस्कार 16 प्रमुख संस्कारों में से सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि, इस संस्कार से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है। और उसे इस लोक से परलोक तक की यात्रा में सहायता मिलती है।
बौधायन पितृमेधसूत्र में कहा गया है "जातसंस्कारैणेमं लोकमभिजयति मृतसंस्कारैणामुं लोकम्।" जिसका अर्थ है कि जन्म संस्कार व्यक्ति को पृथ्वी लोक पर सफल बनाता है। जबकि, मृत्यु संस्कार उसे परलोक में विजय दिलाता है। विधिवत अंत्येष्टि से मृत आत्मा की अतृप्त इच्छाएं समाप्त होती हैं। एवं वह पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति की ओर बढ़ती है। इसके अलावा यह संस्कार मृतक के परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है। जो उनका धार्मिक और सामाजिक दायित्व है।
हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों में अंत्येष्टि संस्कार सबसे अंतिम संस्कार है। इसे मृतक की आत्मा को परलोक में मार्गदर्शन और मोक्ष प्रदान करने के उद्देश्य से किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, मृत्यु के बाद माता, पिता, आचार्य, पत्नी, पुत्र, शिष्य, चाचा, मामा और अन्य परिजनों का यह कर्तव्य होता है कि वे मृतक का विधिपूर्वक अंतिम संस्कार करें। एक श्लोक में कहा गया है "तस्यान्मातरं पितरमाचार्य पत्नीं पुत्रं शिष्यं च चाचा मातुलं सगोत्रमसगोत्रं वा दायमुपयच्छेद्दहनं संस्कारेण संस्कृर्वन्ति।" जिसका अर्थ है कि परिवार के सभी प्रमुख सदस्यों को अंतिम संस्कार में अपना योगदान देना चाहिए।
अंत्येष्टि संस्कार की प्रक्रिया मृतक के घर से शुरू होकर श्मशान में समाप्त होती है। इसमें धार्मिक रीति-रिवाजों और मंत्रोच्चारण के साथ मृतक को अंतिम विदाई दी जाती है।
हर साल चैत्र नवरात्रि चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है। साल 2025 में चैत्र नवरात्रि 30 मार्च, रविवार से शुरू हो रही है। नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना की जाती है, जिसका विशेष महत्व माना जाता है।
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की परंपरा सदियों से चली आ रही है। कहा जाता है कि जहां शुभ मुहूर्त में घटस्थापना की जाती है, वहां मां दुर्गा की कृपा हमेशा बनी रहती है और संकटों के बादल कभी नहीं मंडराते, ऐसी मान्यता है।
चैत्र नवरात्रि 30 मार्च से शुरू हो रही है और 6 अप्रैल को समाप्त होगी। यानी नवरात्रि में घटस्थापना 30 मार्च और रामनवमी 6 अप्रैल को होगी। नवरात्रि इस बार रविवार से शुरू होगी, इसलिए इस बार मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आएंगी।
साल 2025 में चैत्र नवरात्रि 30 मार्च, रविवार से शुरू हो रही है। हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि का बहुत महत्व है। चैत्र मास हिंदू नववर्ष का पहला महीना होता है। चैत्र नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और नौ दुर्गाओं का आशीर्वाद बना रहता है।