Jagannath Rath Yatra 2025: पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक मानी जाती है। हर साल लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में शामिल होकर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस भव्य रथ यात्रा से ठीक पहले भगवान जगन्नाथ एक विशेष वेश धारण करते हैं जिसे ‘गजानन वेश’ कहा जाता है? दरअसल, इसके पीछे एक दिलचस्प पौराणिक कथा जुड़ी हुई है, जिसे जानकर आपकी श्रद्धा और बढ़ जाएगी। ऐसे में आइए जानते हैं भगवान जगन्नाथ ने यह रूप क्यों धारण किया था। यहां पढ़ें पौराणिक कथा...
रथ यात्रा से पहले ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ का एक विशेष आयोजन होता है जिसे ‘स्नान पूर्णिमा’ कहा जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को 108 कलशों से स्नान कराया जाता है। यह स्नान इतना भव्य और विस्तृत होता है कि इसके बाद भगवान जगन्नाथ को बुखार आ जाता है। इसी कारण भगवान 15 दिनों के लिए एकांत में चले जाते हैं और इस समय को 'अनासार काल' या 'अनवसर काल' कहा जाता है।
इस अनासार काल के पहले दिन यानी स्नान पूर्णिमा पर, भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों को एक अलग रूप में दर्शन देते हैं। इस दिन वे ‘गजानन वेश’ धारण करते हैं। यानी भगवान जगन्नाथ खुद को भगवान गणेश के रूप में सजाते हैं। यह दृश्य इतना मनमोहक होता है कि इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में भक्त जुटते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, महाराष्ट्र के एक भक्त गणपति भट्ट, जो भगवान गणेश के परम भक्त थे, एक बार पुरी धाम की यात्रा पर आए। उन्हें उम्मीद थी कि पुरी में भगवान गणेश के दर्शन होंगे, लेकिन वहां उन्हें ऐसा कोई मंदिर नहीं मिला। इससे वे बहुत निराश हो गए। उनकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान जगन्नाथ ने उन्हें गजानन रूप में दर्शन देने का निश्चय किया। स्नान पूर्णिमा के दिन, जब गणपति भट्ट मंदिर में प्रार्थना कर रहे थे, तभी भगवान जगन्नाथ ने स्वयं गणेश जी के वेश में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए। यह देखकर गणपति भट्ट अत्यंत प्रसन्न हो गए और उनकी भक्ति सफल हो गई।
गजानन वेश के बाद, भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए एकांतवास में रहते हैं। इस दौरान उन्हें औषधियों और विश्राम के माध्यम से स्वस्थ किया जाता है। इसके बाद आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को वह रथ यात्रा के लिए तैयार होते हैं और भव्य शोभायात्रा के रूप में अपने मौसी के घर गुंडिचा मंदिर की ओर रवाना होते हैं।
आज 09 जुलाई 2025 को आषाढ़ माह का 29वां दिन है। साथ ही आज पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष तिथि चतुर्दशी है। आज बुधवार का दिन है। सूर्य देव मिथुन राशि में रहेंगे।
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या कहा जाता है। जब अमावस्या सोमवती यानी सोमवार को आती है, या फिर आषाढ़ जैसे पवित्र महीनों में होती है, तब इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
हिंदू धर्म में पितृ दोष को अत्यंत गंभीर माना गया है। यह दोष तब उत्पन्न होता है जब पूर्वजों की आत्मा किसी कारणवश अशांत होती है या पितरों का उचित विधि से श्राद्ध, तर्पण या पूजा न की जाए।
हिंदू पंचांग में प्रत्येक अमावस्या तिथि को विशेष धार्मिक महत्त्व प्राप्त है, लेकिन दर्श अमावस्या का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण एवं विशेष माना जाता है। यह दिन विशेष रूप से पितृ तर्पण और पिंडदान जैसे कर्मों के लिए समर्पित होता है।