शरद पूर्णिमा के समापन के बाद कार्तिक मास की शुरुआत हो जाती है। हिंदू धर्म में कार्तिक मास को विशेष महत्व प्राप्त है। इस महीने जगत के पालनहार भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने का विधान है। इसके अलावा इस माह विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियां करना शुभ माना जाता है। तो आइए इस लेख में जानते हैं कार्तिक मास के धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से।
कार्तिक मास का हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है। इसे भगवान विष्णु का प्रिय महीना माना जाता है। क्योंकि, इस दौरान वे चार महीनों की योग-निद्रा से जागते हैं। इसे चातुर्मास कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार कार्तिक मास में विधि पूर्वक पूजा-पाठ और व्रत करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन के पाप नष्ट हो जाते हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु आषाढ़ मास में योग-निद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक मास में ही जागते हैं। इस महीने में उनके जागरण के साथ ही सभी शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। भगवान विष्णु की आराधना से पापों का नाश होता है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त होता है।
कार्तिक महीने को दामोदर माह के नाम से जाना जाता है। यह आध्यात्मिक ज्ञान और शुद्धि का महीना है क्योंकि हम उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर बढ़ रहे होते हैं। यह कर्मों का फल पाने का भी समय होता है। एक मान्यता के अनुसार भीष्म पितामह ने भी भगवान विष्णु को समर्पित होकर कार्तिक महीने में ही अपना शरीर त्यागा था। इसलिए भी यह महीना विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए सबसे पवित्र महीना माना जाता है।
इस मास माता लक्ष्मी का भी विशेष पूजन किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक मास में लक्ष्मी की आराधना करने से धन-समृद्धि और घर में शांति का वास होता है। दीपावली के दौरान मां लक्ष्मी की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस मास में ब्रह्म मुहूर्त में उठने से एक नई शुरुआत की जा सकती है। मानसिक शांति के लिए ध्यान करना, दिए जलाना, भगवान विष्णु की पूजा करना और भगवान कृष्ण को समर्पित प्रार्थनाएं और भजन एवं, मंत्रों का जाप इत्यादि भी किया जा सकता है।
कार्तिक में प्रतिदिन मंदिर जाना और इस मास के कथा का पाठ करना बहुत लाभदायक सिद्ध होता है। यह आपके शरीर मन और आत्मा की शुद्धि, आध्यात्मिक ज्ञान, आत्म-जागरूकता का समय होता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार भक्त यदि पूरी आस्था और भक्ति के साथ भगवान विष्णु की पूजा करते हैं तो अंततः उन भक्तों को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति भी मिलती है।
सनातन धर्म में साधू-संतों का काफी महत्व है। साधु-संत भौतिक सुखों को त्यागकर सत्य व धर्म के मार्ग पर चलते हैं। इसके साथ ही उनकी वेशभूषा और खान-पान आम लोगों से बिल्कुल भिन्न होती है। उनको ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है। साधू-संत आमतौर पर पीला, केसरिया अथवा लाल रंगों के वस्त्र धारण करते हैं।
2024 के खत्म होने में अब बस कुछ ही दिन शेष बचे हैं। नववर्ष 2025 में ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार कई प्रमुख ग्रहों की चाल में होने वाला है। इनमें गुरु, शनि और राहु-केतु हैं। ये अपनी-अपनी राशि बदलने वाले हैं।
नागा साधु भारत की प्राचीन साधु परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माने जाते हैं। इनका जीवन तपस्या, साधना और आत्मज्ञान की खोज में समर्पित रहता है। नागा साधुओं को मुख्य रूप से महाकुंभ के चार स्थानों के अनुसार ही चार प्रकार में बांटा गया है। बता दें कि महाकुंभ भारत के चार शहरों, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और इलाहाबाद में लगता है।
नव वर्ष यानी साल 2025 कई राशियों के जातकों के लिए बेहद शुभ होने वाला है। न्याय के देवता शनिदेव और देवगुरु बृहस्पति के राशि परिवर्तन से जहां कई राशि के जातकों को लाभ होगा।