हिंदू धर्म में हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी या भैरव अष्टमी कहा जाता है। यह तिथि भगवान शिव के उग्र स्वरूप अर्थात भगवान भैरव को समर्पित है। भक्त इस दिन व्रत भगवान भैरव की आराधना करते हैं और निर्भयता, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान भैरव का जन्म स्वयं भगवान शिव से हुआ था, जब उन्होंने ब्रह्मा जी के अहंकार को समाप्त करने के लिए अपने रौद्र रूप धारण किया था। इसलिए इस दिन को भैरव जयंती के नाम से भी जाना जाता है।
पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 13 अक्टूबर को दोपहर 12:24 बजे से शुरू होगी और 14 अक्टूबर को सुबह 11:10 बजे समाप्त होगी। इसलिए सूर्योदय के अनुसार कालाष्टमी व्रत 13 अक्टूबर, सोमवार को रखा जाएगा। इस दिन भक्त पूजा-अर्चना और उपवास करेंगे।
भगवान भैरव को ‘संहारक देवता’ भी कहा जाता है, जो भक्तों को बुरी नज़र, नकारात्मक ऊर्जाओं और भय से बचाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त पूरे अनुष्ठान का पालन करते हुए कालाष्टमी व्रत करता है, उसके जीवन से सभी प्रकार के भय, संकट और मानसिक तनाव दूर हो जाते हैं। कालाष्टमी अष्टमी व्रत शांति, आत्मविश्वास और समृद्धि भी प्रदान करता है।
हिंदू शास्त्र में यह श्लोक है की ‘भैरव पूजनं ये कुर्युः ते न भयमवाप्नुयुः’ अर्थात जो व्यक्ति कालाष्टमी के दिन भैरव पूजन करता है, वह भय और बाधाओं से मुक्त होकर सुखमय जीवन जीता है।
कालाष्टमी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान कर पूजा स्थल को साफ करें। इसके बाद भगवान शिव या भगवान भैरव की एक तस्वीर रखें फिर उन्हें तिल का तेल, सरसों के फूल और नैवेद्य अर्पित करें। साथ ही, घी का दीया और धूप जलाएँ। पूजा करने के बाद भैरव चालीसा, रुद्राष्टकम और महामृत्युंजय का 108 बार मंत्र का जाप करें। फिर आरती तथा रात्रि में भैरव भजन गाकर जागरण करें।
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