वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी जातक के जीवन की दिशा और दशा उसकी जन्मकुंडली से समझी जा सकती है। जन्म के समय ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति मिलकर जातक के भविष्य की तस्वीर बनाते हैं। जहां शुभ योग व्यक्ति को समृद्धि, यश और सफलता दिलाते हैं। वहीं अशुभ योग जीवन में कठिनाई और संघर्ष को जन्म देते हैं। इन्हीं अशुभ योगों में एक है पितृदोष, जिसे बहुत गंभीर माना जाता है। मान्यता है कि कुंडली में पितृदोष बनने पर परिवार में अशांति, संतान सुख में बाधा, आर्थिक हानि और अचानक रोग जैसी परेशानियां घेर लेती हैं।
ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार पितृदोष कई विशेष योग बनने पर बनता है। इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं:
कुंडली में बने योगों से तो पितृदोष की स्थिति स्पष्ट हो जाती है, लेकिन इसके असर जीवन में भी नजर आते हैं। यदि किसी परिवार में बार-बार संतान सुख में बाधा आए, घर के सदस्यों को अकाल मृत्यु या गंभीर रोग परेशान करें, परिवार में बिना वजह विवाद और कलह बनी रहे या लगातार आर्थिक हानि हो, तो ये संकेत पितृदोष की ओर इशारा करते हैं। इसके अलावा कई बार जातक सपनों में पूर्वजों को देखता है या पितरों से संबंधित संकेत प्राप्त करता है, तब भी यह दोष सक्रिय माना जाता है।
ज्योतिष और शास्त्र दोनों में पितृदोष से मुक्ति के उपाय बताए गए हैं। अमावस्या तिथि पर श्राद्ध और तर्पण करना सबसे प्रभावी उपाय माना गया है। विशेषकर पितृपक्ष में किया गया तर्पण पितरों को तृप्त करता है और उनकी कृपा वंशजों को मिलती है। इसके अलावा गया जी में पिंडदान का महत्व सर्वोच्च माना जाता है।