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कुंडली में कब बनता है पितृदोष

कुंडली में कब बनता है पितृदोष

Pitra Dosh: कुंडली में पितृदोष कब और किन कारणों से बनता है, इसे कैसे पहचाने जानिए विस्तार से

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी जातक के जीवन की दिशा और दशा उसकी जन्मकुंडली से समझी जा सकती है। जन्म के समय ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति मिलकर जातक के भविष्य की तस्वीर बनाते हैं। जहां शुभ योग व्यक्ति को समृद्धि, यश और सफलता दिलाते हैं। वहीं अशुभ योग जीवन में कठिनाई और संघर्ष को जन्म देते हैं। इन्हीं अशुभ योगों में एक है पितृदोष, जिसे बहुत गंभीर माना जाता है। मान्यता है कि कुंडली में पितृदोष बनने पर परिवार में अशांति, संतान सुख में बाधा, आर्थिक हानि और अचानक रोग जैसी परेशानियां घेर लेती हैं।

कुंडली में कब बनता है पितृदोष

ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार पितृदोष कई विशेष योग बनने पर बनता है। इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं:

  • जब राहु, केतु या शनि जैसे पाप ग्रह कमजोर सूर्य या चंद्रमा के साथ युति बनाते हैं तो कुंडली में पितृदोष उत्पन्न होता है।
  • बृहद पाराशर होरा शास्त्र में कहा गया है कि यदि लग्नेश (कुंडली का पहला भाव), सप्तमेश (सातवां भाव) और पंचमेश (पांचवां भाव) कमजोर हों तो पितृदोष बनता है। यदि ये ग्रह बली हों तो दोष का असर नहीं होता।
  • यदि पंचम भाव का स्वामी अशक्त हो या फिर छठे, आठवें या बारहवें भाव में चला जाए तो भी पितृदोष लगता है।
  • पंचम भाव पर राहु, केतु, शनि या मंगल का प्रभाव अशुभ माना जाता है और इससे भी यह दोष बनता है।
  • कुंडली के दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें और दसवें भाव में सूर्य-राहु या सूर्य-शनि की युति होने पर भी पितृदोष की संभावना होती है।

पितृदोष की पहचान कैसे करें

कुंडली में बने योगों से तो पितृदोष की स्थिति स्पष्ट हो जाती है, लेकिन इसके असर जीवन में भी नजर आते हैं। यदि किसी परिवार में बार-बार संतान सुख में बाधा आए, घर के सदस्यों को अकाल मृत्यु या गंभीर रोग परेशान करें, परिवार में बिना वजह विवाद और कलह बनी रहे या लगातार आर्थिक हानि हो, तो ये संकेत पितृदोष की ओर इशारा करते हैं। इसके अलावा कई बार जातक सपनों में पूर्वजों को देखता है या पितरों से संबंधित संकेत प्राप्त करता है, तब भी यह दोष सक्रिय माना जाता है।

पितृदोष से मुक्ति के उपाय

ज्योतिष और शास्त्र दोनों में पितृदोष से मुक्ति के उपाय बताए गए हैं। अमावस्या तिथि पर श्राद्ध और तर्पण करना सबसे प्रभावी उपाय माना गया है। विशेषकर पितृपक्ष में किया गया तर्पण पितरों को तृप्त करता है और उनकी कृपा वंशजों को मिलती है। इसके अलावा गया जी में पिंडदान का महत्व सर्वोच्च माना जाता है।

  • अमावस्या पर ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना।
  • गंगा स्नान और पितरों के नाम तर्पण करना।
  • गौ सेवा, अन्न और जल का दान करना।
  • सूर्य को प्रतिदिन जल अर्पित करना और रविवार का व्रत रखना भी शुभ माना गया है।

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