हिन्दू धर्म में नाग देवता को अत्यंत उच्च स्थान प्राप्त है। नाग पंचमी का पावन पर्व प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है। वर्ष 2026 में यह तिथि सोमवार 17 अगस्त को पड़ रही है। पंचांग अनुसार नाग पंचमी पूजा का शुभ समय प्रातः 05 बजकर 50 मिनट 59 सेकंड से 08 बजकर 28 मिनट 36 सेकंड तक रहेगा। नाग पंचमी की मान्यता बहुत प्राचीन है और इसे नाग वंश के सम्मान, संरक्षण और कृपा के लिए मनाया जाता है। इस दिन अष्ट नागों की पूजा, कथा श्रवण, व्रत और नाग देवता को दूध अर्पित करने से पुण्य फल प्राप्त होता है। सावन मास में यह पर्व विशेष आध्यात्मिक महत्व रखता है।
श्रावण शुक्ल पंचमी नाग पूजा के लिए श्रेष्ठ मानी गई है। 2026 में यह पर्व 17 अगस्त सोमवार को मनाया जाएगा। नई दिल्ली के अनुसार पूजा का समय 05 बजकर 50 मिनट 59 सेकंड से 08 बजकर 28 मिनट 36 सेकंड तक रहेगा। शास्त्रीय नियमों के अनुसार यदि पंचमी तिथि तीन मुहूर्त से कम हो और चतुर्थी युक्त हो तो व्रत पहले दिन किया जाता है। यदि पंचमी तीन मुहूर्त से अधिक रहे तो दूसरे दिन भी व्रत संभव है। नाग पंचमी के दिन घरों, मंदिरों और प्रवेश द्वारों पर नाग चित्र बनाने की परंपरा भी प्रचलित है। इस विशेष समय में नागों की आराधना करने से सभी कष्टों से रक्षा का विश्वास है।
नाग पंचमी पर अष्ट नाग अर्थात अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख की पूजा की जाती है। चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करने और पंचमी के दिन उपवास करने का विधान है। पूजा के लिए नाग चित्र या मिट्टी की सर्प मूर्ति को लकड़ी की चौकी पर स्थापित किया जाता है। इसके बाद हल्दी, रोली, चावल और पुष्प अर्पित किये जाते हैं। कच्चे दूध, घी और चीनी का मिश्रण बनाकर नाग देवता को अर्पित किया जाता है। पूजा के बाद आरती और नाग कथा का श्रवण अनिवार्य माना गया है। सुविधा अनुसार कुछ लोग सपेरे को दक्षिणा देकर सर्प को दूध भी अर्पित कराते हैं।
पुराणों में नाग वंश की उत्पत्ति ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से मानी गई है। दिव्य और भौम दो प्रकार के सर्प बताए गए हैं जिनमें वासुकि, तक्षक आदि दिव्य सर्प माने गए हैं। पौराणिक कथा के अनुसार राजकुमार जन्मजेय ने अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए नाग यज्ञ किया था। इस यज्ञ को आस्तिक मुनि ने रोककर नाग वंश की रक्षा की थी। यह घटना श्रावण शुक्ल पंचमी को हुई थी और तभी से नाग पंचमी मनाने की परंपरा प्रारम्भ हुई। अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापदम, शंखपाल और कुलिक अष्ट नाग विशेष रूप से पूजनीय माने जाते हैं।
हिन्दू आस्था में नागों को भगवान शिव के प्रिय और भगवान विष्णु के आसन का रूप माना गया है। सावन मास के आध्यात्मिक माहौल में नाग पंचमी का महत्व और बढ़ जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि पंचमी तिथि के स्वामी स्वयं नाग देवता हैं और इस दिन पूजा करने से धन, समृद्धि, रक्षा और मनोकामना पूर्ति का फल प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि नाग देवता भूमि, जल और अस्तित्व की रक्षा करने वाली शक्ति का प्रतीक हैं। नाग पूजा से सांपों के भय का नाश होता है और घर परिवार पर उनका विशेष संरक्षण बना रहता है।
नाग पंचमी के दिन कुछ क्षेत्रों में गुड़िया पीटने की रोचक परंपरा भी देखी जाती है। लोककथाओं में वर्णित है कि प्राचीन समय में मनुष्य और नागों के बीच संघर्ष के कारण सांपों से रक्षा की भावना जागृत हुई। इसी कारण लोक प्रतीक के रूप में गुड़िया को पीटकर नकारात्मक शक्तियों और संकटों को दूर करने का विश्वास पैदा हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे फसल सुरक्षा से भी जोड़ा गया है। लोग मानते हैं कि इस क्रिया से खेतों में सांप और हानिकारक जीव दूर रहते हैं। धीरे धीरे यह परंपरा सांस्कृतिक आस्था का रूप लेती गई और नाग पंचमी के अनुष्ठान का हिस्सा बन गई।