धार्मिक ग्रंथो के अनुसार, भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वामन जयंती का पावन दिन कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा पढ़ने से सभी इच्छा पूर्ण होती है। साथ ही, जो भक्त इसे श्रद्धा से पढ़ता है, उनके सभी परेशानी दूर होती हैं और भगवान विष्णु स्वयं उसकी रक्षा करते हैं।
सतयुग के अंत में दैत्यराज बलि ने इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार जमा लिया। यह देख देवता हार मान कर भागे। मां अदिति ने भी यह सब देखा फिर व्याकुल होकर उन्होंने श्रीहरि से प्रार्थना की ‘हे नाथ, देवताओं को बचाइए।’ तभी भगवान विष्णु ने आश्वासन दिया की ‘मैं वामन रूप में आऊँगा और असुरों का अभिमान ख़तम करुंगा।’
मां अदिति के गर्भ से भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी को वामन देव का जन्म हुआ। कुछ वर्षों के बाद बलि भव्य यज्ञ कर रहे थे पूरा आकाश उनके दान की चर्चा से गूंज रहा था। फिर वामन भगवान भी बलि के यज्ञ में पहुँचे। जैसे ही वामन पहुँचे, यज्ञशाला प्रकाश से भर गई फिर बलि ने मुस्कराकर कहा ‘वामन देव, मांगो जो चाहो।’
वामन देव ने सरलता से कहा ‘मुझे केवल तीन पग भूमि चाहिए, जो बस रहने लायक थोड़ी-सी जगह हो।’ यज्ञ में बैठे शुक्राचार्य ने चेताया ‘राजन! यह कोई साधारण बालक नहीं। यह स्वयं विष्णु हैं।’ पर बलि का अहंकार जाग उठा। उन्होंने कहा ‘तीन पग ही सही। लो, मैं वचन देता हूँ।’ गंगा जल लेकर उन्होंने संकल्प किया।
वामन देव का रूप अत्यंत विराट होने लगा और उन्होंने एक पग में पूरी पृथ्वी नाप ली। दूसरे पग में स्वर्गलोक समा गया। फिर वामन देव ने पूछा अब तीसरा पग कहाँ रखु ?
बलि ने सिर झुका दिया और मुस्कुराते हुए कहा ‘प्रभु, तीसरा पग मेरे मस्तक पर रखिए।’ श्रीहरि ने पैर रखा और बली का अहंकार चूर हुआ, फिर तीनों लोकों में संतुलन लौट आया।
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार, भगवान वामन ने बलि को दंड नहीं दिया, बल्कि आशीर्वाद दिया। उन्होंने बली को पाताल लोक का राजा बना दिया और आशीर्वाद दिया की ‘जब तक ये पृथ्वी रहेगी, तुम्हारा नाम भी अमर रहेगा।’ इसलिए वामन जयंती के दिन यह कथा पढ़ी जाती है। यह याद दिलता है की श्रीहरि हर भक्त का कल्याण करते हैं, बस भाव सच्चा होना चाहिए।