कुम्भ मेला एक ऐसा अवसर है जब श्रद्धालु पुण्य अर्जित करने के लिए संगम स्नान, दान और ध्यान करते हैं। इस पवित्र अवसर पर यह सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है कि हम कोई ऐसा कार्य न करें जिससे पाप का अर्जन हो जाए। किसी भी तीर्थ स्थल पर जाने से पहले उस स्थान के महत्व को जानना आवश्यक होता है, ताकि हम पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ वहां पूजा अर्चना कर सकें। चलिए आपको लेख के जरिए उन चीजों के बारे में विस्तार से बताते हैं, जिनसे आपको कुंभ के समय बचना चाहिए।
1. रोजाना धार्मिक काम करें
धर्मशास्त्रों के अनुसार, कुम्भ तीर्थ स्थल पर पहुँचकर श्रद्धालुओं को प्रतिदिन धार्मिक कृत्य करने चाहिए। इसमें दैनिक तीर्थ स्नान, देव मन्दिरों का दर्शन, संध्योपासन, तर्पण, नित्य हवन, पञ्चमहायज्ञ, बलिवैश्वदेव और देवपूजन शामिल हैं। वेद-पुराण का स्वाध्याय भी अवश्य करना चाहिए।
2. राम नाम का जप
कुम्भ क्षेत्र में राम नाम लिखने और अपने इष्ट का निरन्तर स्मरण करने से अनिष्ट ग्रहों का प्रभाव दूर होता है। राम भक्तों को 108 के क्रम में लाल स्याही से राम का नाम अंकित करना चाहिए। त्रिवेणी संगम के क्षेत्र में यह उर्जा अक्षय पुण्य और मनोकामना पूर्ति करती है, और मोक्ष की प्राप्ति के लिए राम का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।
3. दान और सेवा कार्य
महाकुम्भ में उदार मन से दान देना चाहिए। यज्ञ और धार्मिक कृत्यों में श्रद्धापूर्वक भागीदारी करें। भण्डारे और अन्नक्षेत्र में भी अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए। साथ ही, साधु-महात्माओं और विद्वानों के दर्शन एवं उपदेशों से जीवन को धर्म और सेवा में समर्पित करने का प्रयास करें।
4. सात्त्विक खानपान और रहन-सहन:
कुम्भ में खानपान और रहन-सहन सात्त्विक होना चाहिए। एक समय फलाहार और एक समय अन्नाहार करें। अपने जीवन को शुद्ध, स्वस्थ और सादगीपूर्ण रखें। तीर्थ क्षेत्र में किसी से दान न लें, बल्कि देने का प्रयास करें।
5. इष्टदेवता का स्मरण और सेवा संकल्प:
कुम्भ कल्पवास के दौरान अपने इष्टदेवता का सर्वदा स्मरण करें और यथाशक्ति धार्मिक कार्यों में भाग लें। सेवा संकल्प को अपना ध्येय बनाएं।
6. आत्मनिर्भरता
कुम्भ पर्व के दौरान अपने ही अन्न और वस्त्र का उपयोग करें, दूसरों का अन्न न लें। कुम्भ के स्वरूप का ध्यान कर स्नान करें और कुम्भ प्रार्थना करके स्नान करना चाहिए।
महाकुम्भ मेला एक अद्भुत अवसर है, जहां आस्था और भक्ति से जुड़े सभी कृत्य आपके जीवन को सकारात्मक दिशा दे सकते हैं।
अक्षय तृतीया को ‘अखा तीज’ भी कहा जाता है, जो वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दिन किए गए शुभ कार्यों का फल कभी भी समाप्त नहीं होता है। इस साल अक्षय तृतीया 30 अप्रैल, बुधवार को मनाई जाएगी।
अक्षय तृतीया का पर्व हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ माना जाता है और इसे वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना मुहूर्त के किया जा सकता है और उसका फल अक्षय होता है, अर्थात् कभी नष्ट नहीं होता।
परशुराम जयंती भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी के जन्मदिन के रूप में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है और इस साल 29 अप्रैल को परशुराम जयंती मनाई जाएगी। विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान परशुराम एक चिरंजीवी अवतार हैं जो धर्म की रक्षा और अधर्म के नाश के लिए बार-बार पृथ्वी पर आते हैं।
हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया की तिथि को अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है और इस दिन किए गए सभी पुण्य कार्यों, जैसे दान, पूजा और शुभ आरंभ का फल ‘अक्षय’ यानी कि कभी न समाप्त होने वाला होता है।