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चैती छठ के चार दिनों में क्या होता है

चैती छठ के चार दिनों में क्या होता है

Chaiti Chhath 2025: यमुना छठ के चार दिनों में क्या होता है? जानें पूजा की विशेषताएं

चैत्र माह में आने वाली छठ को चैती छठ के नाम से जाना जाता है। इस बार चैत्र छठ एक अप्रैल से शुरू होगी, जो तीन अप्रैल को संध्या अर्घ्य और चार अप्रैल को उषा अर्घ्य के साथ गुरुवार को समाप्त होगी। इसे यमुना छठ भी कहते हैं, क्योंकि पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन यमुना धरती पर प्रकट हुई थीं। इस कारण यमुना में स्नान करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा छठ व्रत को कुमार व्रत भी कहा जाता है। चैत्र छठ पर स्नान, दान और पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि चैत्र छठ या यमुना छठ के नियमों का पालन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं साथ ही दान देने से सुख और स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है। 

चैती छठ या यमुना छठ की ऐसे करें पूजा

चैती छठ पर हमेशा स्नान और दान के बाद ही नहाय-खाय की शुरुआत की जाती है। भोजन करने से पहले भगवान सूर्यदेव और छठी मैया का ध्यान अवश्य करना चाहिए। छठ पूजा के दौरान गंदे हाथों से कोई भी बर्तन या पूजा सामग्री नहीं छूनी चाहिए।

पूजा में इस्तेमाल की जाने वाली चीजों को हर बार हाथ धोने के बाद ही छूना चाहिए। छठ पूजा में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद का भी ध्यान रखना चाहिए। फल-फूल आदि टूटे हुए नहीं होने चाहिए। प्रसाद की सामग्री को हमेशा अलग स्थान पर रखें। 

छठ पूजा के दौरान जमीन पर चटाई बिछाकर सोएं। यह भी छठ पूजा का एक महत्वपूर्ण नियम माना जाता है। जिस बर्तन में छठ पूजा की सामग्री रखी जाती है वह नया होना चाहिए। छठ पूजा की सामग्री को पुराने बर्तनों में नहीं रखना चाहिए। खासकर, जिस बर्तन में आप खाना खाते हैं, उसे पूजा के लिए इस्तेमाल न करें।

चैती छठ पूजा की सही तिथि

नहाय-खाय 1 अप्रैल को है। इस दिन व्रती स्नान-ध्यान कर सूर्य देव और कुलदेवी या देवी मां की पूजा करते हैं। इसके बाद भोजन ग्रहण करते हैं। इस शुभ अवसर पर चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी खाई जाती है। 

2 अप्रैल को खरना मनाया जाएगा। इस दिन महिलाएं दिनभर व्रत रखती हैं। वहीं, शाम को खरना पूजा करने के बाद प्रसाद ग्रहण करती हैं। 

3 अप्रैल को संध्या अर्घ्य दिया जाएगा। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।

 4 अप्रैल को प्रात अर्घ्य दिया जाएगा। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को उगते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इसके साथ ही छठ पूजा का समापन हो जाएगा। सूर्य देव की पूजा करने से निरोगी जीवन का वरदान मिलता है। छठ पूजा का व्रत रखने से नवविवाहित दंपत्तियों को पुत्र की प्राप्ति होती है।

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छूम छूूम छननन बाजे,
मैय्या पांव पैंजनिया।

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