Chhath Puja 2025: क्यों होती है छठ पूजा दो बार, जानें इसके इतिहास और पौराणिक कथा
चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी को मनाए जाने वाले छठ पर्व को 'चैती छठ' और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को मनाए जाने वाले पर्व को 'कार्तिकी छठ' कहा जाता है। ये पर्व पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। इसका एक अलग ऐतिहासिक महत्व भी है।
छठ पूजा की पौराणिक कथा
प्राचीन कथा के अनुसार ऋषि स्वायंभुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने यज्ञ कराया, तब रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन बालक मृत पैदा हुआ, तब माता षष्ठी प्रकट हुईं और अपना परिचय देते हुए उन्होंने मृत बालक को आशीर्वाद दिया और उसे स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो गया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की पूजा की और तभी से पूजा का प्रचलन शुरू हुआ।
छठ महापर्व का इतिहास और महत्व जानें
शास्त्रों के अनुसार एक और सूर्य देव हैं जिनका संबंध भी सीधे सूर्य देव से है। सूर्य देव के पिता का नाम महर्षि कश्यप और माता का नाम अदिति है। उनकी पत्नी का नाम संज्ञा है, जो विश्वकर्मा की पुत्री हैं। संज्ञा के पुत्र का नाम यम और पुत्री का नाम यमुना था और उनकी दूसरी पत्नी छाया से उन्हें शनि नामक महान पुत्र की प्राप्ति हुई। छठ पूजा में सूर्य देव के साथ-साथ छठी मैया की भी पूजा की जाती है, जिन्हें षष्ठी देवी भी कहा जाता है। मां षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना जाता है। इन्हें मां कात्यायनी भी कहा जाता है। जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि के दिन की जाती है। षष्ठी देवी मां को पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी छठी माता की पूजा का उल्लेख मिलता है।
साल में दो बार छठ पूजा क्यों मनाते हैं?
छठ पूजा साल में दो बार मनाई जाती है चैत्र और कार्तिक में, जिन्हें चैती छठ और कार्तिकी छठ कहा जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी माता को समर्पित है और बच्चों की सुरक्षा और सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाता है। आपको बता दें कि छठ पूजा का व्रत महिलाएं अपने बच्चों की रक्षा और पूरे परिवार की सुख-शांति की कामना के लिए रखती हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन छठी मैया निसंतानों को संतान का आशीर्वाद देती हैं।
दीपावली का पर्व हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इसे अंधकार पर प्रकाश और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक माना जाता है। इस दिन धन की देवी महालक्ष्मी और विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा का विशेष महत्व होता है।
दिवाली पर माता लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा का विशेष महत्व है। सही विधि से पूजा करने और विशेष उपाय अपनाने से धन, सुख, और समृद्धि प्राप्त होती है। इससे आर्थिक तंगी दूर रहती है और माता लक्ष्मी जी की कृपा भी बनी रहती है।
दिवाली पर मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। साफ-सफाई, शुभ रंगों और विशेष भोग से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। श्री यंत्र की स्थापना और दीप प्रज्वलन से सुख-समृद्धि का वास होता है।
देव दिवाली देवताओं की दिवाली मानी जाती है। यह दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा पर मनाई जाती है। यह पर्व भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर का वध कर देवताओं को मुक्ति दिलाने की खुशी में मनाया जाता है।