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नवरात्रि की छठी तिथि को मां कात्यायनी का पूजन किया जाता है। यह मां पार्वती का दूसरा नाम है। इसके अलावा मां के इस स्वरूप को उमा, गौरी, काली, हेेमावती व ईश्वरी नामों से भी जाना जाता हैं। यजुर्वेद के आरण्यक में, स्कन्द पुराण में, देवी भागवत पुराण और मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य में भी मैया के इस रूप का उल्लेख है। जिसके अनुसार मां भगवती त्रिदेवों के क्रोध से उत्पन्न हुई थीं। मैया ने अपने इस अवतार में सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया था। इसके साथ ही कालिका पुराण में भी देवी कात्यायनी का वर्णन है। भक्त वत्सल के नवरात्रि विशेषांक के आंठवे लेख में हम आपको मां कात्यायनी के बारे में बताने जा रहे हैं।
परम्परागत रूप से लाल चुनरी ओढ़े मैय्या के इस स्वरूप की नवरात्रि उत्सव की षष्ठी को पूजा की जाती है। मैय्या का यह रूप अत्यंत चमकीला और आभा से भरा है। मां कात्यायनी की चार भुजाएँ हैं। इनमें माताजी दाहिनी तरफ ऊपर वाले हाथ से भक्तों को अभयमुद्रा में आशीर्वाद दे रही हैं। वही माता का नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में मां तलवार धारण किये हुए हैं। मैय्या अपने नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प लिए हुए है।
इस अवतार में मां सिंह की सवारी पर सुशोभित है। माँ कात्यायनी की उपासना से भक्तों को बहुत ही लाभ होते हैं। मैय्या बड़ी सरलता और सहजता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों को देने वाली हैं।
मां कात्यायनी के नाम को लेकर पौराणिक कथा है कि, कात्यायन नामक एक श्रेष्ठ महर्षि देवी के बड़े उपासक थे। उन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना और तपस्या की। वर्षों की कठिन तपस्या के बाद जब मां ने उनसे वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने माँ भगवती से अपने घर पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान मांगा। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार करते हुए उनके घर पुत्री बनकर जन्म लिया। कात्यायन मुनि की बेटी होने के कारण मैय्या का नाम कात्यायनी हुआ।
हालांकि इनकी उत्पत्ति के बारे में वामन और स्कंद पुराण दो अलग-अलग कथाएं हैं। स्कंद पुराण में कहा गया है कि, जब दानव महिषासुर का अत्याचार तीनों लोकों में बढ़ रहा था। तब मैय्या ने त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश के क्रोध से अवतार लिया और महिषासुर का संहार किया।
वहीं वामन पुराण के अनुसार महिषासुरमर्दिनी मैय्या का यह अवतार सभी देवताओं की ऊर्जा से कात्यायन ऋषि के आश्रम में एक शक्तिपूंज के रूप में हुआ।
मैय्या अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी भी हैं। नवरात्रि के छठे दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित होता है। जिसमें योग साधना का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना । कात्यायनी च शुभदा देवी दानवघातिनी ॥
देवी की परंपरागत पूजा विधि के द्वारा ही मां कात्यायनी की पूजा की जाती है लेकिन फिर भी मैय्या के इस स्वरूप को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें। जैसे-
मां कात्यायनी की पूजा प्रदोषकाल यानी गोधूली बेला में करना श्रेष्ठ माना गया है।
इनकी पूजा में शहद का प्रयोग जरूर किया जाना चाहिए।
शहद युक्त पान का भोग भी देवी कात्यायिनी को लगाएं।
देवी कात्यायनी की पूजा में लाल रंग के कपड़ों का भी विशेष महत्व है।
देवी कात्यायनी की पूजा करने से शक्ति का संचार होता है।
मैय्या दुश्मनों पर विजय की शक्ति प्रदान करने वाली हैं।
मां कात्यायनी की पूजा से अविवाहित लड़कियों के विवाह के योग बनते हैं।
देवी कात्यायनी भक्तों के सभी रोग, शोक, संताप, भय आदि का नाश करती है।
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