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धार्मिक मान्यता के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के मृत्यु के पश्चात उसका विधि-विधान से अंतिम संस्कार न किया जाए या फिर किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु हो जाए तो इससे परिवार सहित कई पीढ़ियों को पितृदोष प्रभाव झेलना पड़ता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यदि किसी की कुंडली में पितृदोष होता है उस व्यक्ति और उसके परिवार में समस्याओं का सिलसिला लगा रहता है। हालाँकि, जो भी लोग पितृ दोष से जूझ रहे होते है उन्हें इस दोष के बारे में जानकारी नहीं होती। वह इसे अपने भाग्य का हिस्सा मन कर बैठ जाते है। चलिए आज जानते है कि आखिर क्या है पितृदोष, कितने प्रकार के होते है पितृदोष, क्या है इसके लक्षण और पितृदोष से बचने का क्या उपाय हैं…
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की कुंडली के लग्न भाव और पांचवें भाव में सूर्य मंगल और शनि विराजमान होते हैं या अष्टम भाव में गुरु और राहु एक साथ आकर बैठते हैं, तो पितृदोष का निर्माण होता है।
जब सूर्य, चंद्रमा और लग्नेश का राहु से संबंध होता है, तो जातक की कुंडली में पितृ दोष बनता है। अगर सरल भाषा में समझाए तो पितृ दोष उस अवस्था को कहते है जब हमारे पूर्वजों की आत्माएं तृप्त नहीं होती, तो ये आत्माएं पृथ्वी लोक में रहने वाले अपने वंश के लोगों को कष्ट देती हैं।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार मृत्यु लोक पर हमारे पूर्वजों की आत्माएं अपने परिवार के सदस्यों को देखती रहती हैं। जो लोग अपने पूर्वजों का अनादर करते हैं, या उन्हें कष्ट देते हैं। इससे दुखी दिवंगत आत्माएं उन्हें श्राप देती हैं इसी श्राप को पितृ दोष माना जाता है। पितृ दोष के किसी व्यक्ति की पर चढ़ने के पीछे कई कारण होते है।
जिस प्रकार किसी बीमारी के कई लक्षण होते है जिन्हे देख कर बीमारी का नाम और उसकी प्रकृति का पता लगता है उसी तरह पितृ दोष से जूझ रहे व्यक्ति में भी पितृ दोष के लक्षण दिखते है।
ज्योतिष ग्रंथ लाल किताब में विभिन्न प्रकार के दोषों और उनके उपायों पर चर्चा की गई है। पितृ दोष भी इनमें से एक महत्वपूर्ण दोष है। लाल किताब में पितृ दोष को लेकर 10 प्रकार के दोषों का वर्णन किया गया है, जिनके आधार पर व्यक्तियों के जीवन में विभिन्न समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
1. पितृ दोष : यह दोष तब उत्पन्न होता है जब किसी व्यक्ति के पूर्वजों की आत्मा को शांति नहीं मिल पाती या वे परलोक में अशांत होते हैं। इस दोष के प्रभाव से व्यक्ति की जीवन में आर्थिक समस्याएँ, पारिवारिक संघर्ष, और शारीरिक बीमारियाँ हो सकती हैं।
2. मृत्यु पितृ दोष : यदि किसी परिवार में किसी व्यक्ति की मृत्यु असामयिक होती है या मृत्यु के बाद परिवार में लगातार परेशानियाँ आती हैं, तो इसे मृत्यु दोष कहा जाता है।
3. आर्थिक पितृ दोष : यदि किसी व्यक्ति के परिवार में बार-बार आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं और धन की कमी रहती है, तो इसे आर्थिक पितृ दोष कहा जाता है। यह दोष परिवार की समृद्धि को प्रभावित करता है और व्यक्ति को वित्तीय संकट में डाल सकता है।
4. स्वास्थ्य पितृ दोष : जब किसी व्यक्ति को बार-बार स्वास्थ्य समस्याएँ होती हैं, विशेषकर गंभीर बीमारियाँ या अपंगता, तो इसे स्वास्थ्य पितृ दोष माना जाता है। यह दोष पितृकालीन दोषों के कारण उत्पन्न होता है और व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है।
5. संतान पितृ दोष : जब किसी व्यक्ति को संतान सुख प्राप्त नहीं होता या संतान के साथ समस्याएँ आती हैं, तो इसे संतान पितृ दोष कहा जाता है। यह दोष परिवार की खुशहाली को प्रभावित करता है और संतान की समस्याओं को बढ़ाता है।
6. विवाह पितृ दोष : यदि किसी व्यक्ति की शादी में बार-बार अड़चनें आती हैं या विवाह में विलंब होता है, तो इसे विवाह पितृ दोष कहा जाता है। यह दोष जीवन साथी के चयन में कठिनाइयाँ पैदा करता है।
7. शिक्षा पितृ दोष : जब किसी व्यक्ति को शिक्षा में बार-बार विघ्न उत्पन्न होते हैं या शिक्षा की दिशा में सफलता नहीं मिलती, तो इसे शिक्षा पितृ दोष कहा जाता है। यह दोष शिक्षा के क्षेत्र में समस्याएँ उत्पन्न करता है।
8. परिवारिक पितृ दोष : यदि परिवार में बार-बार विवाद और झगड़े होते हैं, तो इसे परिवारिक पितृ दोष कहा जाता है। यह दोष परिवार के सदस्यों के बीच असहमति और संघर्ष को बढ़ाता है।
9. सामाजिक प्रतिष्ठा पितृ दोष : जब किसी व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आती है या समाज में सम्मान प्राप्त नहीं होता, तो इसे सामाजिक प्रतिष्ठा पितृ दोष कहा जाता है। यह दोष व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को प्रभावित करता है।
10. अन्याय पितृ दोष : यदि किसी व्यक्ति को बार-बार अन्याय या हानि का सामना करना पड़ता है, तो इसे अन्याय पितृ दोष कहा जाता है। यह दोष व्यक्ति की जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
ॐ श्री सर्व पितृ देवताभ्यो नमो नमःॐ प्रथम पितृ नारायणाय नमःॐ नमो भगवते वासुदेवाय
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