Sawan 2025 Lingashtakam Path: शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार भगवान शिव का लिंग रूप ही उनका आदि और अनंत स्वरूप है। यह रूप ब्रह्मांड के सृजन, पालन और संहार का प्रतीक माना गया है। कहा जाता है कि जब सृष्टि का आरंभ हुआ, तब शिव एक अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे, जिसका न कोई आदि था और न ही अंत। ब्रह्मा और विष्णु भी इस दिव्य स्तंभ के छोर को जानने में असफल रहे थे। इस अग्निलिंग से ही प्रणव (ॐ) ध्वनि का उद्गम हुआ, जिससे सम्पूर्ण सृष्टि की रचना हुई। तभी से शिव की उपासना लिंग रूप में की जाती रही है।
पुराणों में वर्णित लिंगाष्टकम् स्तुति विशेष रूप से शिवलिंग की महिमा का गान करती है। ऐसी मान्यता है कि सावन के पावन महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए और बेलपत्र अर्पित करते हुए श्रद्धापूर्वक लिंगाष्टकम् का पाठ करने से शिव जी की कृपा सदा बनी रहती है। यह साधना भक्त के जीवन से पाप, कष्ट और बाधाओं को दूर कर उसे आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाती है।
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥1॥
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥2॥
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥3॥
कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥4॥
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥5॥
देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥6॥
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥7॥
सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥8॥
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
कि बन गए नन्दलाल लिलिहारि,
री लीला गुदवाय लो प्यारी ।
मैं रूप तेरे पर, आशिक हूँ,
यह दिल तो तेरा, हुआ दीवाना
किरपा मिलेगी श्री राम जी की,
भक्ति करो, भक्ति करो,
कीर्तन है वीर बजरंग का,
नच नच कर इनको मना,