सावन शिवरात्रि और महा शिवरात्रि में क्या है अंतर, जानें दोनों शिव पर्वों की विशेषताएं और महत्व
हिंदू धर्म में भगवान शिव के भक्तों के लिए शिवरात्रि का विशेष महत्व होता है। शिवरात्रि साल में कई बार आती है, लेकिन महाशिवरात्रि और सावन शिवरात्रि को विशेष रूप से पवित्र माना जाता है। यद्यपि दोनों पर्व शिवभक्ति के लिए समर्पित हैं, लेकिन इनकी तिथि, धार्मिक पृष्ठभूमि और प्रतीकात्मकता में कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं।
महाशिवरात्रि वर्ष में एक बार आने वाला पर्व
- महाशिवरात्रि हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है, जो आमतौर पर फरवरी-मार्च के बीच आती है।
- पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पवित्र विवाह हुआ था। इसलिए इस पर्व को विवाह वर्षगांठ के रूप में भी पूजा जाता है।
- महाशिवरात्रि को आध्यात्मिक साधना, योग, और ध्यान के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है। इस दिन भक्त व्रत रखते हैं, रात्रि जागरण करते हैं, शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं और महामृत्युंजय मंत्र या ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करते हैं। यह दिन आत्मशुद्धि और मोक्ष की ओर अग्रसर होने का प्रतीक है।
सावन शिवरात्रि शिवमास में आने वाला विशिष्ट पर्व
- प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है, लेकिन श्रावण मास में आने वाली शिवरात्रि को सावन शिवरात्रि कहा जाता है, जो कि विशेष रूप से पुण्यदायक मानी जाती है।
- सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। यह मास वर्षा, हरियाली और शुद्धिकरण का प्रतीक होता है। इस माह में शिवभक्ति करने से कई गुना पुण्य प्राप्त होता है।
- शास्त्रों के अनुसार, सावन शिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को अपने कंठ में धारण किया था। उनके इसी त्याग के कारण वे नीलकंठ कहलाए। विष के प्रभाव को शांत करने के लिए देवताओं ने उनके ऊपर जलाभिषेक किया, जिससे इस दिन अभिषेक का विशेष महत्व है।
सावन शिवरात्रि और महा शिवरात्रि की समानताएं
- दोनों शिवरात्रियों पर शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा और भांग अर्पित की जाती है।
- भक्त उपवास रखते हैं, दिनभर शिवनाम का जाप करते हैं और रात्रि को जागरण कर शिवमहिमा का गुणगान करते हैं।
- चाहे महाशिवरात्रि हो या सावन शिवरात्रि दोनों ही पर्व आत्मकल्याण, मानसिक शांति, और शिव तत्व की अनुभूति के लिए अनुकूल माने जाते हैं।