सावन मास की शिवरात्रि भगवान शिव की विशेष कृपा पाने का सर्वोत्तम अवसर माना जाता है। इस दिन भक्त व्रत रखते हैं, रात्रि जागरण करते हैं और शिवलिंग का जलाभिषेक कर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस दिन शिवजी की आराधना के साथ उनकी कथाओं का श्रवण भी अत्यंत पुण्यदायक होता है। इनमें से एक अत्यंत प्रचलित और कल्याणकारी कथा है, ‘गुह शिकारी की कथा’, जो यह सिखाती है कि शिवभक्ति सच्चे भाव और कर्म से की जाए तो वह जरूर फल देती है, चाहे वह अज्ञानेन ही क्यों न हो।
प्राचीन काल की बात है। वाराणसी (काशी) के समीप एक घना जंगल था। उसी जंगल में गुह नामक एक शिकारी अपने परिवार के साथ रहता था। वह प्रतिदिन शिकार कर अपने और अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। एक बार की बात है, शिवरात्रि के दिन वह भोजन की तलाश में जंगल में गया, परंतु बहुत देर तक भटकने के बाद भी उसे कोई शिकार नहीं मिला।
शाम होने लगी और शिकारी को भय हुआ कि खाली हाथ घर लौटने पर उसका परिवार भूखा रह जाएगा। ऐसे में वह एक बेल वृक्ष पर चढ़ गया और वहां से नीचे देखने लगा। उसे पता नहीं था कि ठीक उसी बेलवृक्ष के नीचे एक प्राचीन शिवलिंग स्थापित था। पेड़ पर बैठा वह जैसे ही इधर-उधर हिलता, उसके हाथों से बेलपत्र और जल शिवलिंग पर गिरते रहे। अनजाने में ही वह पहले प्रहर की शिव पूजा कर चुका था।
इसी दौरान, एक हिरनी अपने बच्चों के साथ वहां से गुजर रही थी। शिकारी ने जैसे ही उस पर निशाना साधा, वह विनम्रता से बोली ‘हे शिकारी, मुझे अपने बच्चों के पास जाने दो, मैं शीघ्र लौट आऊंगी।’ शिकारी ने उसे छोड़ दिया। इसी तरह, दूसरी हिरनी और एक हिरण भी उसके पास आए, और उन सबने जीवन की याचना की। शिकारी ने करुणा दिखाई और तीनों को जाने दिया। इस प्रकार, तीनों प्रहरों की पूजा, जलाभिषेक, बेलपत्र अर्पण, उपवास और रात्रि जागरण उसके द्वारा अनजाने में पूरी हो गई।
जब भोर हुई, तो शिकारी ने देखा कि सभी जानवर अपनी बात के अनुसार लौट आए हैं। यह देखकर उसके मन में करुणा जाग उठी। उसने उन सबको जीवनदान दिया और निश्चय किया कि वह अब कभी किसी जीव की हत्या नहीं करेगा।
इस त्याग, दया और अनजाने भक्ति से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और शिकारी को दर्शन देकर उसे आशीर्वाद दिया। भगवान ने कहा कि अब से तू ‘गुह’ नाम से जाना जाएगा और तेरे इस पुण्य से तेरे सभी पाप क्षमा होंगे।