महानिर्वाणी अखाड़ा भारत के प्राचीन और प्रतिष्ठित अखाड़ों में से एक है, जिसका संबंध शैव संप्रदाय से है। अखाड़े का मुख्य केंद्र उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में है। वहीं इसके आश्रम ओंकारेश्वर, काशी, त्र्यंबकेश्वर, कुरुक्षेत्र, उज्जैन व उदयपुर में मौजूद है। महानिर्वाणी अखाड़े के सदस्य शास्त्रों के ज्ञाता होने के साथ-साथ शस्त्र विद्या में भी पारंगत होते हैं। वहीं सामाजिक सेवा के कार्यों में भी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।अखाड़ा कुंभ मेले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और शाही स्नान की परंपरा में आगे होता है। बता दें कि महानिर्वाणी अखाड़े से ही महामंडलेश्वर पद की शुरुआत हुई थी।
चलिए आपको महानिर्वाणी अखाड़े के बारे में और विस्तार से बताते हैं।
महानिर्वाणी की विरासत दस हजार साल पुरानी मानी जाती है। लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक 748 ईस्वी में सात साधुओं ने गंगासागर में तपस्या की और संत कपिल मुनि के दर्शन प्राप्त किए। उनके आशीर्वाद से, उन्होंने नील धारा, हरिद्वार के पास महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना हुई। वहीं औपचारिक रूप से इसे भगवान आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी ने संगठित किया। बता दें कि कपिल मुनि महानिर्वाणी अखाड़े के इष्टदेव भी है। वहीं इस अखाड़े को नाग परंपरा को पुनर्जीवित करने का श्रेय भी दिया जाता है। ।
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर मंदिर का ऐतिहासिक रूप से धार्मिक और प्रशासनिक संबंध महानिर्वाणी अखाड़े से रहा है। अखाड़े के साधु-संन्यासियों ने मंदिर के संरक्षण, पूजा-पद्धति, और धार्मिक परंपराओं को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई है।
हालांकि, वर्तमान समय में मंदिर का प्रबंधन मुख्य रूप से राज्य सरकार के अधीन "महाकाल मंदिर प्रबंध समिति" द्वारा होता है। लेकिन अखाड़ा आज भी धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में अपनी भूमिका निभाता है और शिवरात्रि जैसे प्रमुख पर्वों पर विशेष उपस्थिति देता है।
मुगल सम्राट औरंगजेब ने हिंदू मंदिरों और धार्मिक स्थलों को नष्ट करने की नीति अपनाई थी। ऐसा कहा जाता है कि जब उसकी सेना ने महाकालेश्वर मंदिर (उज्जैन) पर आक्रमण करने की कोशिश की, तो महानिर्वाणी अखाड़ा के नागा साधुओं ने संगठित होकर विरोध किया। दोनों सेनाओं के बीच युद्ध हुआ, जिसमें महानिर्वाणी अखाड़े ने औरंगजेब की सेना को परास्त किया।यह घटना भारतीय धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अखाड़ा परंपरा के बलिदान और साहस को दर्शाती है।
नटखट नटखट नंदकिशोर,
माखन खा गयो माखनचोर,
मैया के पावन चरणों में,
तू सर झुका के देख ले,
ममता मई माँ हे जगदम्बे,
मेरे घर भी आ जाओ,
मन बस गयो नन्द किशोर,
अब जाना नहीं कही और,