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दशहरे के दिन छोटे बच्चों को क्यों है उपहार देने की परंपरा, पढ़िए राजा बलि की कथा

दशहरे के दिन छोटे बच्चों को क्यों है उपहार देने की परंपरा, पढ़िए राजा बलि की कथा

भारतीय परंपरा में विजयादशमी भगवान श्रीराम की लंका अधिपति रावण के ऊपर विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला उत्सव है। इस पर्व पर देशभर में अनेकों स्थानों पर राक्षसराज रावण के साथ उसके भाई कुंभकरण और पुत्र मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाता है। इसके पूर्व रामलीला का मंचन करने की भी परंपरा है। इस दिन भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अपराजिता और शमी के पौधे की भी पूजा की जाती है। 


दशहरे पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन करना शुभ 


दशहरे के अवसर पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन करने को बहुत ही शुभ माना जाता है। भगवान शिव को नीलकंठ भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन नीलकंठ के दर्शन से जीवन में भाग्योदय, धन-धान्य एवं सुख -समृद्धि की प्राप्ति होती है। ऐसी कई परंपराओं के बारे विस्तार से जानकारी आपको भक्त वत्सल पर मिलेगी। 


दशहरे पर बच्चों को उपहार देना शुभ


दशहरे के दिन छोटे बच्चों को उपहार देने की परंपरा है। इसके पीछे कई सांस्कृतिक और धार्मिक कारण हैं। रावण का वध करने के बाद भगवान राम चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। इस खुशी में बच्चों को उपहार देकर यह संदेश दिया जाता है कि जीवन में सदा अच्छाई का पालन करना चाहिए। इस दिन रावण के प्रतीक पुतले का दहन कर बच्चे बड़ों से आशीर्वाद लेते हैं। घर के बड़ों द्वारा दिए गए उपहार उनके जीवन में सुख, समृद्धि और ज्ञान लाते है। इस तरह बच्चों को उपहार देकर उन्हें खुशी और प्रोत्साहन देने की भावना दशहरे के उत्सव का महत्वपूर्ण हिस्सा है। 


राजा बलि से जुड़ी कथा


राजा बलि एक प्रसिद्ध दानवीर राजा थे। इनका उल्लेख वामन अवतार की पौराणिक कथा में मिलता है। राजा बलि असुर वंश के राजा थे और उन्होंने तीनों लोकों पर अपना शासन स्थापित कर लिया था। बलि ने इतना अधिक पुण्य अर्जित किया था कि देवता चिंतित हो गए और भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर उनकी परीक्षा ली।

इस कथा के अनुसार, भगवान विष्णु वामन (बौने ब्राह्मण) के रूप में राजा बलि के पास गए और उनसे तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा बलि ने यह दान स्वीकार कर लिया। वामन रूप में भगवान विष्णु ने विशाल रूप धारण कर लिया और पहले दो पगों में स्वर्ग और पृथ्वी को नाप लिया। तीसरे पग के लिए राजा बलि ने अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक में भेज दिया। लेकिन उनकी भक्ति और दानवीरता के कारण भगवान विष्णु ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। साथ ही उन्हें वरदान दिया कि वे वर्ष में एक बार दशहरे के दिन धरती पर आने और अपने राज्य की प्रजा से मिलने अवश्य आएंगे।

हालांकि राजा बलि की कथा दशहरे से सीधे तौर पर जुड़ी नहीं है। लेकिन उनके दान और उदारता के गुण भारतीय लोकाचार में आदर्श माने जाते हैं। उपहार देने की परंपरा चाहे दशहरे पर हो या किसी अन्य त्योहार पर उदारता और पुण्य की उसी भावना से प्रेरित मानी जा सकती है।


दशहरे पर बच्चों की विद्यारंभ कराने की परंपरा


दशहरे का पवित्र अवसर पर धर्म पर विष्णु के अवतार भगवान राम व वामन अवतार ने विजय प्राप्त की थी। इसलिए इस दिन बच्चे की विद्यारंभ करवाने की भी परंपरा है। सनातन काल में गुरुकुल परंपरा थी जिसमें सम्पूर्ण संस्कार के बाद बच्चों को गुरुकुल भेजा जाता था। माना जाता है कि संसार को प्रेरणा देने के लिए भगवान ने वामन अवतार लेकर इस दिन राजा बलि का अभिमान भगवान ने तोड़ा था।


चूंकि भगवान राजा बलि के यहां याचक बनकर आए थे। इसलिए उन्होंने एक छोटे कद का बालक का वामन रूप धरा था। भगवान संसार को बताना चाहते हैं कि मांगने वाला सदैव तुच्छ व छोटा होता है। इस दिन से बच्चे बड़ों से आशीर्वाद लेकर प्रेरणा लेते हैं कि वे अपने ज्ञान व शक्ति का सही उपयोग करेंगे। हार को सदैव सहज भाव से स्वीकार करेंगे। बदले में उन्हें उपहार प्राप्त होते हैं।


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शिव नाम से है,
जगत में उजाला ।

हे शेरावाली नजर एक कर दो(Hey Sherawali Nazar Ek Kar Do)

हे शेरावाली नजर एक कर दो
हे मेहरवाली माँ मेहर एक कर दो,

हे दुःख भन्जन, मारुती नंदन (Hey Dukh Bhanjan Maruti Nandan)

हे दुःख भन्जन, मारुती नंदन,
सुन लो मेरी पुकार ।

हे शिव भोले भंडारी(Hey Shiv Bhole Bhandari)

हे शिव भोले भंडारी,
मैं आया शरण तिहारी,

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