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हिंदू धर्म में गंगा नदी को केवल एक नदी नहीं, बल्कि एक देवी के रूप में पूजा जाता है। मां गंगा को मोक्षदायिनी, पाप विनाशिनी और पुण्य प्रदान करने वाली माना गया है। मां गंगा से जुड़े दो प्रमुख पर्व गंगा सप्तमी और गंगा दशहरा हैं, जिनका धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है। मगर इन दोनों पर्व के आध्यात्मिक उद्देश्य, पौराणिक कथाएं और उत्सव की विधियां अलग-अलग हैं।
गंगा सप्तमी वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है और इस साल यह पर्व 3 मई, शनिवार को मनाया जाएगा। पौराणिक मान्यता के अनुसार, गंगा सप्तमी के दिन ही देवी गंगा भगवान विष्णु के चरणों को धोने तथा साफ करने के लिए प्रकट हुई थीं। साथ ही, इस दिन उन्हें विष्णु लोक में स्थान भी प्राप्त हुआ था। इसलिए इसे गंगा जयंती भी कहा जाता है, यानी देवी गंगा के प्राकट्य का दिन।
इस दिन श्रद्धालु गंगा स्नान, दान-पुण्य, गंगाजल से अभिषेक और गंगा सहस्त्रनाम का पाठ करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां गंगा की पूजा करने से जीवन के पाप मिट जाते हैं और आत्मा को शुद्धता प्राप्त होती है।
गंगा दशहरा ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह पर्व 5 जून, गुरुवार को मनाया जाएगा। पौराणिक कथा के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा ने पृथ्वी पर अवतार लिया था, ताकि उनके पूर्वजों को मोक्ष मिल सके। इस दिन को मां गंगा के धरती पर अवतरण का दिन माना जाता है। साथ ही, इसे मोक्ष का उत्सव भी कहा जाता है।
इस अवसर पर श्रद्धालु हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज जैसे तीर्थस्थलों पर गंगा स्नान और दान-पुण्य करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि गंगा दशहरा पर दस प्रकार के पापों का नाश होता है, इसलिए इसे ‘दशहरा’ कहा जाता है।
गंगा सप्तमी और गंगा दशहरा दोनों पर्व मां गंगा को समर्पित हैं। दोनों पर्वों पर गंगा स्नान, दान और मंत्र जाप का विशेष महत्व होता है। इन त्यौहारों को आत्मशुद्धि, पापों के नाश और मोक्ष की प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।
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