कश्मीर का नाम सुनते ही बर्फीले पहाड़, फूलों से सजे बाग और शांत झरनों की तस्वीर आंखों के सामने उभरने लगती है। कश्मीर की प्राकृतिक सुंदरता अपने आप में अद्वितीय है। यही वजह है कि इस अनोखी जगह पर दुर्गा पूजा जैसा भव्य उत्सव और भी खास बन जाता है। अक्टूबर 2024 में जब कश्मीर की वादियाँ दुर्गा माँ के जयकारों से गूंजेंगी तब यहां का दृश्य सचमुच देखने लायक होगा।
दुर्गा पूजा का आयोजन भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े धूमधाम से किया जाता है। लेकिन कश्मीर में इसे मनाने का अंदाज अन्य राज्यों से काफी अलग होता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय और देवी दुर्गा की महिमा का उत्सव है। हालांकि, कश्मीर में हिंदू जनसंख्या कम है फिर भी यहां की सांस्कृतिक विविधता इस पर्व को एक खास रंग देती है। कश्मीर की खूबसूरत वादियों के बीच दुर्गा पूजा का आयोजन यहाँ की अनूठी परंपराओं के साथ बड़े ही श्रद्धा भाव से मनाया जाता है।
अक्टूबर के महीने में जब कश्मीर की हवाएं ठंडी होती हैं, तब दुर्गा पूजा के पावन उत्सव से वातावरण में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा और उमंग का संचार होता है। यहाँ के श्रद्धालु देवी दुर्गा के सम्मान में उपवास रखते हैं और विशेष रूप से तैयार किए गए प्रसाद का वितरण करते हैं। कश्मीर की इस पूजा में स्थानीय लोगों के साथ कई पर्यटक भी शामिल होते हैं। अगर आप इस नवरात्रि में कश्मीर जाने का प्लान कर रहे हैं तो कश्मीर की खूबसूरत वादियों के बीच माँ दुर्गा की पूजा आपके जीवन में एक अनोखा अनुभव जोड़ सकती है।
कश्मीर में दुर्गा पूजा के लिए खास पंडाल बनाए जाते हैं। जो यहाँ की पारंपरिक कला और शिल्प को दर्शाते हैं। पंडालों को रंग-बिरंगे फूलों और दीयों तो वहीं पहाड़ी के रास्तों को आकर्षक रोशनी से सजाया जाता है। जिससे वादी की सुंदरता में चार चांद लग जाता है। देवी दुर्गा की मूर्तियों के साथ उनके सभी दिव्य सखियों और साथियों की भी प्रतिमाएं पंडालों में स्थापित होती हैं। इन मूर्तियों पर कश्मीरी शिल्प का अद्भुत कारीगरी देखने को मिलता है जो इसे बाकी जगहों से भिन्न बना देती है।
दुर्गा पूजा के दौरान कश्मीर की लोक संस्कृति की छाप भी साफ दिखाई पड़ती है। इस पर्व के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इनमें कश्मीर के पारंपरिक नृत्यों और संगीत का विशेष महत्व होता है। रौफ और भांड पाथर जैसे लोक नृत्य दुर्गा पूजा के दौरान यहां की समृद्ध संस्कृति को जीवंत करते नजर आते हैं। ये नृत्य कलाकारों की कुशलता और शास्त्रीयता का बेहतरीन उदाहरण पेश करते हैं, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
कश्मीर में दुर्गा पूजा की एक और खास बात यह भी है कि यहां की परंपराओं में एक अलग तरह की सादगी और शांति देखने को मिलती है। यहां के पंडित समुदाय में दुर्गा पूजा की विधियां बहुत ही धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती हैं। यहां के लोग पर्व को आत्मिक शुद्धि और समाजिक समरसता का प्रतीक मानते हैं। कश्मीरी पंडितों की परंपराओं में देवी के प्रति असीम श्रद्धा और भक्ति की झलक भी मिलती है।
गुड़ी पड़वा का पर्व हिंदू नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। यह त्योहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है, जो इस साल 30 मार्च को पड़ रहा है।
हिंदू धर्म में नवरात्रि के दिनों को बेहद पवित्र और खास माना जाता है। नवरात्रि का त्योहार साल में चार बार आता है। चैत्र माह में आने वाली प्रत्यक्ष नवरात्रि बेहद खास होती है, क्योंकि इसी महीने से सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना शुरू की थी।
गणगौर व्रत हिंदू धर्म में महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह व्रत मुख्य रूप से भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है, इसे विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए करती हैं।
गणगौर व्रत भारतीय संस्कृति में स्त्रियों की श्रद्धा, प्रेम और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।