सनातन धर्म को मानने वाले और हिन्दू धर्म के धार्मिक ग्रंथों में अधिक रुचि रखने वाले लोगों ने कहीं न कहीं मातृकाओं के विषय में जरूर पढ़ा या सुना होगा। दरअसल मातृका शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है माताएं। इन्हें मातर या मातृ भी कहा गया है। सप्त मातृका देवियों का एक समूह है जिन्हें हिंदू मान्यताओं में एक बहुत श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। मातृकाओं को अक्सर सात के समूह में दर्शाया गया है। वहीं किन्हीं किन्हीं स्थान पर इनकी संख्या आठ भी बताई गई है. लेकिन प्रमुख रूप से मातृकाएं सप्त ही होती हैं। नवरात्रि विशेषांक श्रृंखला के इस लेख में हम आपको बताते हैं आखिर क्या हैं सप्त या अष्ट मातृकाएं?
ब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, इन्द्राणी, कौमारी, वाराही और चामुण्डा अथवा नरसिंही। इनमें ब्रह्माणी ब्रह्मा से, वैष्णवी विष्णु से, माहेश्वरी शिव से, इंद्राणी इंद्र से, कौमारी कार्तिकेय से, वाराही वराह से और चामुंडा चंडी से उत्पन्न हुई मानी जाती हैं। वही नरसिम्हा से नरसिम्ही और गणेश से विनायकी की उत्पत्ति बताईं गईं है।
ब्रह्मा जी की शक्ति से उत्पन्न ब्रह्माणी या ब्राह्मी पीले रंग और चार सिरों के साथ दानव दलन के लिए अवतरित हुई हैं। इस स्वरूप में चार भुजाओं में माता माला या पाश, कमंडल, कमल पुष्प, पुस्तक या घंटी धारण करती हैं। इस रूप में मैय्या हंस और कमलासन पर बैठी है। माता इस रूप में विशेष आभूषणों के साथ एक मुकुट जिसे करंड मुकुट कहा जाता है पहनती हैं और भैरव की पत्नी कहीं गई हैं।
भगवान विष्णु की शक्ति देवी वैष्णवी गरुड़ पर विराजमान हैं और अपनी छह भुजाओं में शंख, चक्र, गदा, कमल, धनुष और तलवार धारण करती है। मां की दो भुजाएँ वर मुद्रा और अभय मुद्रा में हैं। वही देवी हार, पायल, झुमके, चूड़ियाँ और किरीट मुकुट से श्रृंगारित हैं।
संहारक भगवान शिव की शक्ति माहेश्वरी को रौद्री, रुद्राणी, महेशी, शिवानी नामों से भी पूजा गया है। शिव नंदी (बैल) पर सवार छह हाथों वाली मैय्या श्वेत वर्ण और त्रिनेत्र वाली हैं। देवी हाथों में त्रिशूल, डमरू, मोतियों की माला, कपाल, सर्प और जटा मुकुट धारण किए हुए हैं।
देवी इन्द्राणी, इन्द्री, महेंद्री, वज्रा के नाम से विख्यात मैय्या देवता इंद्र की शक्ति से उत्पन्न हुई हैं। हाथी पर बैठी मां इंद्राणी छह भुजाओं वाली हैं। मैय्या का वर्ण काला है। काली स्वरूपा माता अपने हाथों में वज्र, अंकुश, पाश और कमल डंठल लिए हुए हैं। माता इस अवतार में कपाल भैरव की पत्नी हैं।
देवी कौमारी का उल्लेख कुमारी, कार्तिकी, कार्तिकेयनी, अंबिका नाम से भी है। देवताओं के सेनापति कार्तिकेय की शक्ति मां कौमारी मोर पर सवार है। मां की बारह भुजाओं में भाला, कुल्हाड़ी, चांदी के सिक्कों का कलश और धनुष के अलावा सभी अस्त्र-शस्त्र हैं। यह देवता चंदा भैरव की पत्नी हैं।
भगवान श्री हरि विष्णु के तीसरे अवतार वराह अवतार की शक्ति से उत्पन्न माता वाराही को वरही, वैराली, वेराई, दंडिनी, धनदई देवी के नाम से भी पूजा गया है।
वराह की शक्ति वाली मैय्या एक दंड या हल, अंकुश, वज्र, तलवार हाथों में लेकर भैंसें की सवारी करती हैं। मैय्या इस अवतार में उन्मत्त भैरव की पत्नी हैं।
काली स्वरूपा मां चामुंडी को चर्चिका भी कहा गया है। मां काली की तरह चामुंडा भी मुंडमाला, डमरू, त्रिशूल, तलवार और मुकुट पहने हुए वर्णित किया गया है। मैय्या की सवारी सियार है। जिस पर बैठी तीन आंखों वाली रौद्र मुद्रा में मां भीषण भैरव की पत्नी हैं।
मैय्या का यह रूप विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह भगवान से उत्पन्न हुआ है। इसमें सिंह-पुरुष की दिव्य शक्तियां है। इस रूप में माता का एक नाम प्रत्यंगिरा भी है। जो नारी-सिंह अपने अयाल को हिलाकर तारों को अस्त-व्यस्त करने की शक्ति रखतीं हैं। सिर पर करंड मुकुट हाथों में डमर, त्रिशूल, तलवार के साथ शेर मैय्या इस रूप में संहार भैरव की पत्नी हैं।
मातृकाओं की उत्पत्ति से संबंधित पौराणिक ग्रंथों में मत्स्य पुराण , वामन पुराण, वराह पुराण, कूर्म पुराण और सुप्रभेदागम प्रमुख हैं। देवी महात्म्य में उत्पत्ति को लेकर वर्णित है कि शुंभ-निशुंभ के वध हेतु मातृकाएँ त्रिदेवों ब्रह्मा, शिव, स्कंद, विष्णु, इंद्र के अंश से शक्ति के रूप में प्रकट होती हैं। प्रत्येक देवता ने इन्हें अपनी अपनी शक्तियों से परम शक्तिशाली और सामर्थ्यवान बनाया है। इस प्रकार मातृकाएँ युद्ध और संहार की देवी हैं। इनका वर्णन दुर्गा की सहायक के रूप में किया गया है। इसी प्रकार मत्स्य पुराण में, शिव ने राक्षस अंधक से युद्ध करने के लिए सात मातृकाओं को उत्पन्न किया है।
यही वृतांत विष्णुधर्मोत्तर पुराण में भी है। देवी पुराण में सप्तमातृकाओं के अलावा सोलह मातृकाओं के समूह और छह अन्य मातृकाओं का भी उल्लेख है।
भारत में पूर्णिमा का बहुत महत्व है और देश के प्रमुख क्षेत्रों में इसे पूर्णिमा कहा जाता है। पूर्णिमा का दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि अधिकांश प्रमुख त्यौहार या वर्षगांठ इसी दिन पड़ती हैं।
साल 2025 का पहला सूर्यग्रहण 29 मार्च, शनिवार को लगने वाला है। यह ग्रहण चैत्र अमावस्या के दिन दोपहर 2:20 बजे शुरू होगा और शाम 6:16 बजे समाप्त होगा।
सनातन धर्म में वैशाख महीने का विशेष महत्व है। वहीं, हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वैशाख महीना वर्ष का दूसरा महीना माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह महीना भगवान श्री कृष्ण के लिए अत्यंत प्रिय है। इसके अलावा इस महीने में भगवान विष्णु की पूजा का भी विशेष महत्व है।
स्वस्थ रहने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से सक्रिय रहना अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब आपकी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में संतुलन नहीं होता है, तो इसका नकारात्मक प्रभाव आपकी मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ सकता है।