शारदीय नवरात्रि हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो मां दुर्गा की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह पर्व पितृ पक्ष के समापन के बाद आश्विन आमवस्या के बाद आता है। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना या घट स्थापना के साथ शारदीय नवरात्र का शुभारंभ होता है। यह नवरात्रि शरद ऋतु में आती हैं, इसलिए इसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि शारदीय नवरात्रि को दौरान 9 दिन देवी दुर्गा अपने भक्तों के बीच रहने और उन पर कृपा करने पृथ्वी पर पधारती हैं । शारदीय नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की विधि विधान से पूजा की जाती है और नवरात्रि के पर्व को बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। नवरात्रि के दिनों में मां के आगमन से पूरा वातावरण शुद्ध और पावन हो जाता है। आईए जानते हैं साल 2024 में शारदीय नवरात्रि की शुरूआत कब से हो रही है, कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त क्या है और मां की पूजा किस प्रकार करनी चाहिए…..
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ 2 अक्टूबर को देर रात 12:18 बजे से होगा। यह तिथि 4 अक्टूबर को तड़के 02:58 बजे तक मान्य रहेगी। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर इस साल शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 3 अक्टूबर दिन गुरुवार से हो रहा है।
3 अक्टूबर से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्रि का कलश स्थापना करने के लिए दो शुभ मुहूर्त प्राप्त हो रहे हैं। कलश स्थापना के लिए सुबह में शुभ मुहूर्त 6 बजकर 15 मिनट से सुबह 7 बजकर 22 मिनट तक है। सुबह में घट स्थापना के लिए आपको 1 घंटा 6 मिनट का समय प्राप्त होगा। इसके अलावा दोपहर में भी कलश स्थापना का मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त में है। यह सबसे अच्छा समय माना जाता है। दिन में आप 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट के बीच कभी भी कलश स्थापना कर सकते हैं। दोपहर में आपको 47 मिनट का शुभ समय प्राप्त होगा।
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है, जो मां दुर्गा की आराधना के लिए एक महत्वपूर्ण पूजा है। घटस्थापना के दौरान एक घड़े में जल और अनाज भरकर मां दुर्गा की पूजा की जाती है।
1. घड़ा
2. जल
3. अनाज
4. मां दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति
5. फूल
6. जल
7. पूजा की थाली
8. आरती की थाली
- सबसे पहले सुबह उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें और साफ़ वस्त्र पहनें।
- पूरे घर को शुद्ध करने के बाद मुख्य द्वार की चौखट पर आम के पत्तों का तोरण लगाएं।
- पूजा के स्थान को साफ करें और गंगाजल से पवित्र कर लें।
- अब वहां चौकी लगाएं और माता की प्रतिमा स्थापित करें।
- दुर्गा मां और गणेश जी का नाम लें।
- इसके बाद उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा में कलश की स्थापना करें।
- कलश स्थापना के लिए पहले एक मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोएं। फिर एक तांबे के कलश में पानी और गंगाजल डालें।
- कलश पर कलावा बांधें और आम के पत्तों के साथ उसे सजाएं। इसके बाद उसमें दूब, अक्षत और सुपारी डालें।
- उसी कलश पर चुनरी और मौली बांध कर एक नारियल रख दें।
- सामग्री का उपयोग करते हुए विधि- विधान से मां दुर्गा का पूजन करें।
- दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
- अंत में मां दुर्गा की आरती करें और प्रसाद का वितरण करें।
1. मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है।
2. शक्ति और स्त्रीत्व की आराधना होती है।
3. जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
4. पापों का नाश होता है।
5. मोक्ष की प्राप्ति होती है।
1. घटस्थापना के लिए शुभ मुहूर्त का चयन करें।
2. घटस्थापना के दौरान, व्रत और उपवास रखें।
3. घटस्थापना के बाद, मां दुर्गा की पूजा करना जारी रखें।
4. घटस्थापना के दौरान, मन को शुद्ध और एकाग्र रखें।
मां दुर्गा हर बार अलग-अलग वाहन पर सवार होकर आती हैं। मां दुर्गा किस वाहन से आएंगी इसका असर देश और दुनिया पर देखने को मिलता है। अबकी बार मां दुर्गा पालकी पर सवार होकर आएंगी। माना जा रहा है कि मां दुर्गा का पालकी पर सवार होकर आना देश की सुरक्षा और अर्थ व्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है। साथ ही पालकी पर सवार होकर आना आंशिक रूप से महामारी का कारण भी माना जाता है, इसलिए देश में बीमारी और महामारी फैलने की भी आशंका है।
दुर्गा अष्टमी या महा अष्टमी आश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस साल दुर्गा अष्टमी 11 अक्टूबर दिन शुक्रवार को है। अष्टमी के दिन कन्या पूजा की जाएगी। नवमी के दिन हवन और दशमी के दिन शारदीय नवरात्रि का समापन हो जाता है।
इस साल महा नवमी भी 11 अक्टूबर को ही है। लेकिन महानवमी का हवन 12 अक्टूबर शनिवार को होगा।
पहला दिन (प्रतिपदा): 3 अक्टूबर, गुरुवार: घटस्थापना, शैलपुत्री पूजा
दूसरा दिन (द्वितीया): 4 अक्टूबर, शुक्रवार: ब्रह्मचारिणी पूजा
तीसरा दिन (तृतीया): 5 अक्टूबर, शनिवार: चंद्रघंटा पूजा
चौथा दिन (चतुर्थी) : 6 अक्टूबर, रविवार: कूष्मांडा पूजा
पांचवा दिन (पंचमी): 7 अक्टूबर, सोमवार: स्कंदमाता पूजा
छठवां दिन (षष्ठी): 8 अक्टूबर, मंगलवार: कात्यायनी पूजा
सातवां दिन (सप्तमी): 9 अक्टूबर, बुधवार: कालरात्रि पूजा
आठवां दिन (अष्टमी) : 10 अक्टूबर, गुरुवार: महागौरी, दुर्गा अष्टमी
नौवां दिन (नवमी): 11 अक्टूबर, शुक्रवार: सिद्धिदात्री
दसवां दिन (दशमी): 12 अक्टूबर, शनिवार: नवमी हवन, दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी, दशहरा, शस्त्र पूजा, नवरात्रि पारण
देवी दुर्गा ने आश्विन के महीने में महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। इसलिए इन नौ दिनों को शक्ति की आराधना के लिए समर्पित कर दिया गया, चूंकि आश्विन मास में शरद ऋतु का प्रारंभ हो जाता है, इसलिए इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी।
कृष्ण घर नन्द के जन्मे,
दुलारा हो तो ऐसा हो,
कृष्ण जिनका नाम है,
गोकुल जिनका धाम है,
विवाह पंचमी एक विशेष हिंदू पर्व है, जो भगवान श्री राम और माता सीता के विवाह के अवसर पर मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से रामभक्तों के लिए महत्वपूर्ण है।
हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के साथ सूर्य, चंद्रमा, नदियों और प्रकृति की पूजा का भी विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अमावस्या के बाद चंद्र दर्शन शुभ और पुण्यदायी माना जाता है।