नवीनतम लेख
नवरात्रि के शुरू होते ही गरबा के पंडालों में हर रात्रि महा महोत्सव की धूम रहती है। देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से नवरात्रि मनाई जाती है। लेकिन गरबा का नजारा हर कहीं देखने को मिलता है। वक्त के साथ गरबा के स्वरूप और आयोजन के तौर तरीकों में बहुत से बदलाव आए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं गरबा की शुरुआत गुजरात से हुई है। गुजरात को गरबा का गढ़ कहा जाता है। गुजराती गरबा दुनियाभर में प्रसिद्ध है। भक्त वत्सल के नवरात्रि विशेषांक में इस बार हम आपको बताते हैं कि आखिर क्यों करते हैं गुजरात में गरबा और यह कैसे शुरू हुआ।
गरबा संस्कृत शब्द गर्भदीप से जन्मा है। इसे एक स्त्री के गर्भ का प्रतीक के रूप में माना गया है जो एक गोलाकार छेद वाला मटका होता है जिसे गर्भा या गर्बा कहा जाता है। इसे आप हिन्दी में घड़े या कलश का गुजराती नाम भी कह सकते हैं। इसकी स्थापना होती है और देवी को खुश करने के लिए इन गर्बों के चारों तरफ घूम-घूमकर एक विशेष नृत्य किया जाता है। इसी नृत्य को हम गरबा कहते हैं। पांडाल में बीच में रखा गर्बा जीवन का प्रतीक कहलाता है।
इसे लेकर एक पौराणिक कहानी भी है, जिसके अनुसार महिषासुर ने जब स्वर्ग सहित संसार में त्राहिमाम मचा दिया था तब देव और मानव सभी भय से मुक्ति के लिए श्री हरि विष्णु की शरण में गए। तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपनी शक्तियों को मिलाकर एक परम शक्ति को अवतरित किया और दुर्गा का अवतार हुआ। मैया ने लगातार नौ दिन महिषासुर से युद्ध किया और युद्ध के दौरान मैया एक विशिष्ट क्रोध मुद्रा में रण में इधर-उधर चल रही थी जो एक नृत्य सा प्रतीत हो रहा था। आगे चलकर महिषासुर मर्दिनी मैया के सम्मान में गरबा का प्रचलन इसी नाच के रूप में होने लगा।
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।