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श्रावण का क्या महत्त्व है एवं कैसे भगवान शिव को प्रसन्न करें

श्रावण का क्या महत्त्व है एवं कैसे भगवान शिव को प्रसन्न करें

इस बार श्रावण मास २२ जुलाई सोमवार के दिन से ही शुरू होकर १९ अगस्त सोमवार को ही समाप्त हो रहा है इस बार श्रावण मास में पांच सर्वार्थ सिद्धि योग एक अमृत सिद्धि योग और रवि पुष्य का विशेष संयोग रहेगा। ऐसी मान्यता है कि इन योगों में भगवान शिव की विशेष आराधना कार्य की सिद्धि के साथ-साथ मनोवांछित फल प्रदान करती है।


श्रावण मास के पाँच सोमवार २२ जुलाई, २९ जुलाई, ५ अगस्त, १२ अगस्त और १९ अगस्त को हैं।


श्रावण मास का क्या महत्त्व है और ये भगवान शिव तथा माता पार्वती को इतना प्रिय क्यों है?


श्रावण माह का नाम सुनते ही हमारे मन में एक अलग ही चेतना एवं स्फूर्ति का संचार होने लगता है और हम सोचने लगते हैं की हम कैसे देवों के देव भगवान महादेव को प्रसन्न करें और अपना मनोवांछित फल प्राप्त करे। सबसे पहले तो सवाल ये कि श्रावण ही क्यों सर्वश्रेष्ठ होता है शिव आराधना के लिए या फिर हम सब क्यों श्रावण के नाम से प्रफुल्लित हो उठते हैं?


ऐसें तो पुराणों में श्रावण कि बहुत महिमा गायी हुई है और चार उत्तम मासों में श्रावण को अति विशिष्ट बताया गया है और वो चार मास हैं -


१) वैशाख २) श्रावण ३) कार्तिक ४)


माघ इन मासों में से श्रावण मास भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है जानते हैं क्यों? क्योंकि माता पार्वती ने प्रभु भोलेनाथ को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इसी माह में भगवान कि विशेष पूजा अर्चना की थी जिसके फलस्वरूप माता पार्वती और प्रभु शिव का विवाह संपन्न हुआ।


इस माह की पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र होता है जिसकी वजह से हम इसे श्रावण मास के रूप में जानते हैं।


ऐसें तो हम सब जानते हैं की सोमवार भगवान शिव की पूजा के लिए विशिष्ट दिन है लेकिन अगर ये सोमवार भी प्रभु के प्रिय श्रावण मास में ही पड़ जाये तो सोने पे सुहागा भक्तों, इसीलिए श्रावण के सोमवार अति महत्वपूर्ण हो जाते हैं शिव आराधना के लिए। शिवपुराण में भगवान शिव ने स्वयं कहा है कि द्वादश मासों में से श्रावण मास उन्हें अत्यंत ही प्रिय है एवं जो भी भक्त इस माह में पूरे भक्तिभाव से उनका पूजन करता है उस भक्त कि वे सभी मनोकामनाएँ पूरी करते है।


बोलिये नमो पार्वतीपते हर हर महादेव


श्रावण में भगवान शिव की पूजा कहाँ और कैसे करें


सबसे पहले तो ये बता देना अनिवार्य है की प्रभु की पूजा आप कहीं भी कर सकते हैं क्यूंकि भगवान तो भाव से प्रसन्न होते है फिर भी अगर बात की जाये की श्रावण मास में विशिष्ट पूजा आप कहाँ करें तो हम आपको बताते है कि भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन श्रावण माह में अति विशिष्ट एवं फलदायी होते हैं तो अगर आप किसी भी ज्योतिर्लिंग के दर्शन इस माह में कभी कर लें तो समझिये कि आपकी विशिष्ट पूजा संपन्न हुई। बारह ज्योतिर्लिंग इस प्रकार है -


सोमनाथ, गुजरात

मल्लिकार्जुन, आंध्र प्रदेश

महाकालेश्वर, मध्य प्रदेश

ओंकारेश्वर, मध्य प्रदेश

केदारनाथ, उत्तराखंड

भीमाशंकर, महाराष्ट्र

काशी विश्वनाथ, उत्तर प्रदेश

त्र्यंबकेश्वर, महाराष्ट्र

वैद्यनाथ, झारखण्ड

नागेश्वर, गुजरात

रामेश्वरम, तमिलनाडु

घृष्णेश्वर, महाराष्ट्र

इन बारह ज्योतिर्लिंगों का एक श्लोक है जो भगवान शिव को काफी प्रिय है -


सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।उज्जयिन्यां महाकालं ओमकारम् ममलेश्वरम्॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥

इतिश्री द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति सम्पूर्णम्


कहते है कि अगर आप सिर्फ इन बारह ज्योतिर्लिंगों का स्मरण भी श्रावण मास में कर लें तो भी भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।


देखिये हम सब इतने भाग्यशाली नहीं हो सकते कि हमेशा श्रावण में ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर लें तो निराश होने कि जरुरत नहीं है, वो कहते हैं न कि कण कण में भगवान हैं तो इसी भावना को लेकर अपने आस पास के किसी भी शिव मंदिर में जाकर आप शिव कि पूजा अर्चना भक्ति भाव से करें तब भी आपको पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है।


कुछ विशिष्ट कार्यों की सिद्धि के लिए कई प्रकार के पदार्थों से निर्मित शिवलिंग की पूजा की जाती है जैसें कि दही, दूर्वा, कुशा, चावल के आटे, मिश्री एवं और भी कई सामग्री से बने हुए शिवलिंगों की पूजा की जाती है लेकिन कुछ लोग अपने घर पर ही भगवान कि विशिष्ट पूजा करते हैं और ज्योतिर्लिंग के अलावा घर पे उपलब्ध शिवलिंग की पूजा भी परम फलदायी होती है कुछ विशिष्ट प्रकार के शिवलिंग जिनकी पूजा अत्यंत फलदायी बताई गई है - स्फटिक, पारद, चाँदी, स्वर्ण तथा मिट्टी के पार्थिव शिवलिंग की पूजा भी अति फलदायी बताई गई है तो भक्तों देर किस बात की आप भी अपने घर में उपलब्ध शिवलिंग की श्रद्धानुसार पूजा अर्चना करें।


भगवान भोलेनाथ की पूजा के लिए सबसे पहले तो ध्यान रखें की सदाचार का पालन करें, तामसिक भोजन एवं तामसिक प्रवत्ति से दूर रहें कम से कम भगवान के प्रिय श्रावण मास में।


भगवान शिव को अभिषेक अति प्रिय है इसलिए प्रभु का अभिषेक जल, गंगाजल, गौ दूध, दही, घी, शहद, शकर (चीनी), इत्यादि से करें, तदुपरांत उन्हें उनकी प्रिय वस्तुएं अर्पित करें। अभिषेक करने के बाद भगवान को चन्दन घिस कर अर्पित करें, अक्षत अर्थात बिना टूटे हुए चावल चढ़ाएं, भगवान शिव की बेलपत्र अतिप्रिय है इसलिए बेलपत्र जरूर अर्पित करें, इसके अलावा भगवान शिव को धतूरा, आक और भांग भी अतिप्रिय है इसलिए अगर संभव हो सके तो प्रभु इन सभी के फल और फूल अर्पित करें। ये सब अर्पित करते समय भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र - ॐ नमः शिवाय का भक्तिपूर्वक जाप अवश्य करते रहें, अगर संभव हो तो रुद्राक्ष की माला से मंत्र का यथानुसार जाप करें। प्रभु के मंत्र जाप से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है, फिर आरती करें, इस प्रकार भक्ति-भावपूर्वक पूजा करने से भगवान आपकी सारी अभिलाषाओं की पूर्ति अवश्य करते हैं। अगर संभव हो और समय पर्याप्त हो तो भगवान शिव के प्रिय स्त्रोतों में से किसी भी स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। भगवान शिव को रुद्राष्टकम्, बिल्वाष्टकम्, लिंगाष्टकम् तथा रावणरचित शिवतांडव-स्तोत्र अत्यधिक प्रिय हैं।

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