भगवान विष्णु के अवतारों में से एक भगवान परशुराम को क्रोध के अवतार के रूप में भी जाना जाता है। अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिले में स्थित परशुराम कुंड इस अवतार से जुड़ा हुआ है। परशुराम कुंड को कुठार के नाम से भी जाना जाता है। लोगों का विश्वास है कि मकर संक्रांति के अवसर पर परशुराम कुंड में एक डुबकी लगाने से सारे पाप कट जाते है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, परशुराम ऋषि जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका के पुत्र थे। जमदग्नि एक बुद्धिमान ऋषि थे जिनके पास एक जादुई कुल्हाड़ी थी जो किसी भी मांग को पूरा कर सकती थी। एक बार ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका ऋषि राज के नहाने के लिए पानी लेने गई। किसी कारणवश उसे पानी लाने में देर हो गई तब ऋषि राज ने परशुराम को अपनी पत्नी का वध करने के आदेश दिया। पिता की आज्ञा के अनुसार परशुराम ने अपनी माता का वध कर दिया। तब परशुराम ने मातृ वध के पाप से मुक्त होने के लिए इस कुंड में स्नान किया। तभी से ये कुंड लोकप्रिय हो गया। ये कुंड अब लोहित की पहचान बन चुका है।
14 और 15 जनवरी को पड़ने वाली मकर संक्रांति का मुख्य आकर्षण परशुराम कुंड मेला है जो लोहित जिले के तेजू शाति/तैलंग क्षेत्र में मनाया जाता है और यह 1972 से एक नियमित आयोजन है। ये मेला जिला मुख्यालय, तेजू और परशुराम कुंड दोनों में आयोजित किया जाता है। जनवरी के पहले सप्ताह से 31 जनवरी तक आयोजित होने वाले इस मेले के दौरान देशभर और नेपाल से तीर्थयात्री और आम लोग दर्शनीय स्थलों की यात्रा और प्रसिद्ध लोहित नदी में पवित्र स्नान के लिए आते हैं।
हवाई मार्ग - अरुणाचल प्रदेश के प्रसिद्ध परशुराम कुंड पहुंचने के लिए मोहनबाड़ी हवाई अड्डा निकटतम एयरपोर्ट है। यहां से आप टैक्सी के द्वार कुंड पहुंच सकते है।
रेल मार्ग - अरुणाचल प्रदेश के प्रसिद्ध परशुराम कुंड पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन तिनसुकिया है। यहां से आप टैक्सी या स्थानीय परिवहन द्वारा पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग - तिनसुकिया में हर दिन अरुणाचल राज्य परिवहन सेवा उपलब्ध है।
साल की आखिरी मासिक शिवरात्रि के दिन का बहुत महत्व है। इस दिन भगवान शिव और मांं पार्वती की पूजा होती है। इस दिन व्रत भी रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त इस दिन भगवान शिव की उपासना और व्रत करता है उस पर भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। साथ ही उन्हें मनचाहा फल प्रदान करते हैं।
सनातन धर्म में भगवान भोलेनाथ की पूजा-आराधना के लिए प्रदोष व्रत का काफ़ी खास माना गया है। प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है।
तेरी मुरली की धुन,
हमने जबसे सुनी,
सुरमय वीणा धारिणी,
सरस्वती कला निधान,