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दीवाली 2024: माता लक्ष्मी ने क्यों छोड़ा स्वर्ग

दीवाली 2024: माता लक्ष्मी ने क्यों छोड़ा स्वर्ग

स्वर्ग छोड़कर क्यों चली गईं थीं माता लक्ष्मी, विष्णु जी ने क्यों दिया था घोड़ी बनने का श्राप 


पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं और दानवों ने मिलकर क्षीरसागर में समुद्र मंथन किया था । इस समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्न सहित अमृत और विष की प्राप्ति हुई। इस समुद्र मंथन से ही माता लक्ष्मी जी की उत्पत्ति हुई जो भगवान श्री विष्णु की अर्धांगिनी बनीं। तभी से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी सदैव साथ रहते हैं। भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार और जगतपिता हैं तो वहीं माता लक्ष्मी सभी का पेट भरने वाली अनपूर्णा और जगत माता हैं। एक बार माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु भ्रमण करने के लिए एक वन में गए, जब दोनों वहां घूम रहे थे तो माता लक्ष्मी जी को एक सुंदर अश्व दिखाई दिया जिसे देखने में माता इतनी मग्न हो गईं कि उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि भगवान विष्णु माता से बात कर रहे हैं और माता का ध्यान भगवान श्री विष्णु जी की बातों पर नहीं रहा।


इस बात से नाराज होकर भगवान विष्णु ने उनको पृथ्वी लोक पर अश्वी यानी घोड़ी बनने का श्राप दे दिया। भगवान विष्णु ने कहा कि आपको कुछ समय के लिए अश्व की योनी में रहना होगा, जिसके उपरांत आपको एक पुत्र प्राप्त होगी जिससे आप श्राप मुक्त हो जाएंगी। भगवान विष्णु के श्राप से माता लक्ष्मी कुछ दिन के धरती पर अश्वी के रूप में रहने लगीं और श्राप मुक्ति के बाद वापस स्वर्ग लोक लौट गईं।



ऋषि दुर्वासा और इंद्र से भी जुड़ी कथा 


एक अन्य मान्यता के अनुसार एक बार ऋषि दुर्वासा ने स्वर्ग के देवता राजा इंद्र को एक फूलों की माला भेंट की जिसे इंद्र ने ऐरावत को पहना दी। ऐरावत हाथी ने इस फूलों की माला को तोड़कर फेंक दिया। इस अपमान से क्रोधित होकर ऋषि दुर्वासा ने इंद्र को श्राप दिया कि तुम्हारा पुरुषार्थ क्षीण हो जाएं, तुम श्रीहिन हो जाओ और देवलोक से तुम्हारा राज्य समाप्त हो जाए। दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण माता लक्ष्मी ने तुरंत स्वर्ग छोड़ दिया। जिसके बाद देवराज इंद्र श्री हीन हो गए और उनका समस्त राज पाठ उनसे छिन गया। इन सबसे परेशान होकर देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की जिसके बाद श्री हरि विष्णु ने कश्यण अवतार धारण कर समुद्र मंथन कराया और दोबारा लक्ष्मी जी की प्राप्ति की।


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खूनी नागा कौन होते हैं

जो लोग अखाड़ों के बारे में नहीं जानते, उन्हें यह जानकर हैरानी हो सकती है कि नागा साधु कई प्रकार के होते हैं। खूनी नागा, खिचड़िया नागा, बर्फानी नागा और नागा। नागाओं को लेकर तमाम तरह की कहानियां भी प्रचलित हैं, जो श्रद्धालुओं को काफ़ी हैरान करते हैं।

बर्फानी नागा कौन होते हैं

भारत की आध्यात्मिक संस्कृति में नागा साधु एक विशेष स्थान रखते हैं। आपने कुंभ मेले में इन्हें शाही स्नान करते, युद्ध कला का प्रदर्शन करते और परंपरागत तरीके से जीवन जीते हुए जरूर देखा होगा। इनकी जड़ें भारतीय सनातन धर्म में गहराई तक फैली हुई हैं। ये अनुशासन, संयम और साधना के लिए विख्यात हैं।

चंद्रमा गोचर 2025 का इन राशियों पर होगा प्रभाव

भारतीय ज्योतिष में भविष्यफल जातक की चंद्र राशि के आधार पर ही निर्धारित की जाती है। मन के साथ-साथ चंद्रमा को माता का कारक ग्रह भी माना जाता है। चंद्रमा राशि चक्र की चतुर्थ राशि यानि कर्क राशि के स्वामी माने जाते हैं।

कब बना किन्नर अखाड़ा?

अखाड़े महाकुंभ की शान होते हैं। इन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु कुंभ मेले में पहुंचते हैं। अखाड़ा परिषद ने कुल 13 अखाड़ों को मान्यता दे रखी है। यह अखाड़े बड़े लोकप्रिय और प्रसिद्ध है। इनमें आम तौर पर महिला संत और पुरुष संत होते हैं।

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