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आज नहीं कल मनाएं देवउठनी एकादशी

आज नहीं कल मनाएं देवउठनी एकादशी

देवउठनी एकादशी 2025 : 1 नवंबर या 2 नवंबर? शास्त्र और पंचांग से जानिए सही तिथि

कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी इसे देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है, इस वर्ष पंचांग परंपराओं में मतभेद के साथ मनाई जा रही है। कहीं व्रत 1 नवंबर को बताया जा रहा है, तो कहीं 2 नवंबर को। दरअसल भेद “तिथि-शुद्धि” के सूक्ष्म नियमों से जुड़ा है। यही निर्णय करता है कि व्रत किस दिन रखा जाए और पारण कब हो।

एकादशी तिथि का विवरण

पंचांग अनुसार इस वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि 1 नवंबर 2025 सुबह 9:11 से शुरू होकर 2 नवंबर सुबह 7:31 तक रहेगी। इसका मतलब है कि 1 नवंबर के सूर्योदय के समय एकादशी तिथि प्रभावी रहेगी, जबकि 2 नवंबर के सूर्योदय तक वह समाप्त हो जाएगी। इसी कारण पंचांगों का मत बंटा है। कुछ 1 नवंबर को व्रत रखने की सिफारिश कर रहे हैं, तो कुछ परंपराएं 2 नवंबर को।

“दशमी युक्त एकादशी” क्या होती है?

जब एकादशी तिथि सूर्योदय के बाद शुरू हो और सूर्योदय के समय दशमी का अंश हो, तो उसे “दशमी युक्त एकादशी” कहा जाता है। शास्त्र कहते हैं कि ऐसी एकादशी व्रत योग्य नहीं होती, क्योंकि व्रत की शुद्धता सूर्योदय से गिनी जाती है। यदि सूर्योदय के समय दशमी का अंश मौजूद हो तो व्रत उस दिन न रख कर अगले दिन करना चाहिए।

गरुड़ पुराण (अध्याय 125) में कहा गया है कि गांधारी ने दशमी युक्त एकादशी का व्रत रखा था, जिसके फलस्वरूप उसे अपने सभी पुत्रों का वध देखना पड़ा। इसलिए शास्त्रों में स्पष्ट निर्देश है कि दशमी युक्त एकादशी से सदैव परहेज किया जाए।

“द्वादशी युक्त एकादशी” क्यों मानी गई श्रेष्ठ

जब एकादशी तिथि सूर्योदय के दौरान हो और द्वादशी के अंश के साथ संयुक्त होती है, तब वह “द्वादशी युक्त एकादशी” कहलाती है। वैष्णव परंपरा उसी दिन व्रत रखने का आग्रह करती है, क्योंकि ऐसी एकादशी “पूर्ण फलदायिनी” मानी गई है।

पद्म पुराण में कहा गया है —

“द्वादशी मिश्रिता ग्राह्या सर्वत्र एकादशी तिथि:”

अर्थात् द्वादशी से मिश्रित एकादशी सर्वदा ग्रहणीय है।

धर्मसिंधु भी कहता है कि यदि एकादशी तिथि सूर्योदय के समय द्वादशी के संग हो, तो वही शुद्ध एकादशी है। साधारण जन को उसी दिन व्रत रखना चाहिए।

शास्त्रों की एकमत वाणी — दशमी युक्त से बचें, द्वादशी युक्त अपनाएं

“दशमी विद्धा एकादशी दैत्यानां पुष्टिवर्धिनी।” – पद्म पुराण

अर्थात् यदि एकादशी में दशमी का अंश आ जाए तो वह दैत्य-वर्द्धक मानी गई है, व्रत उस दिन नहीं करना चाहिए। इसके विपरीत, द्वादशी युक्त एकादशी व्रत सर्वपापहरिणी और मोक्षप्रदा बताई गई है।

“दशमी युक्त एकादशी नरक दायिनी है।” – अग्नि पुराण

इस वर्ष का व्रत कब रखें 

अब इन सभी नियमों को इस वर्ष की तिथियों पर लागू करें। इसके अनुसार 1 नवंबर को मनाई जाने वाली एकादशी तिथि दशमी युक्त एकादशी है। जबकि 2 नवंबर को “द्वादशी युक्त” एकादशी है। यदि भूलवश आपने दशमी युक्त एकादशी का व्रत कर लिया है तो पुराणों के अनुसार, तीस ब्राह्मणों को भोजन कराना, सवत्सा गाय दान देना या चालीस मास सोना दान करना प्रायश्चित्त माना गया है।

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