भालका तीर्थ पर भगवान श्रीकृष्ण ने त्यागा था अपना शरीर, सोमनाथ मंदिर से 4 किमी दूर
श्रीकृष्ण ने ब्रज के बाद द्वारका को अपना निवास स्थान बनाया। हालांकि भगवान कृष्ण से जुड़ा एक ऐसा स्थान भी हैं, जो आज भी उतना प्रसिद्ध नहीं हो पाया जितने की दूसरे धार्मिक स्थल। यह स्थान गुजरात का भालका तीर्थ, जहां श्रीकृष्ण ने अपना मानव शरीर त्याग किया था और बैकुंठ धाम के लिए प्रस्थान कर गए थे। भालका तीर्थ गुजरात के प्रभास क्षेत्र में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रथम पूज्य सोमनाथ मंदिर से 4 किमी की दूरी पर हैं।
यहां पर है हजारों वर्ष पुराना पीपल का पेड़
यही वह स्थान है जहां पर श्रीकृष्ण ने अपने मानव शरीर का अंतिम समय बिताया। मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की एक मुस्कुराती हुई प्रतिमा हाँ और पास में ही वह बहेलिया बैठा हुआ है, जिसके बाण ने भगवान कृष्ण के बाएं पैर को भेद दिया था। मंदिर में हजारों साल पुराना वह पीपल का वृक्ष भी है, जिसके नीचे श्रीकृष्ण उस घटना के समय विश्राम कर रहे थे।
बाण लगने से हुई थी श्रीकृष्ण की मृत्यु
मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण विश्राम करने के लिए यहां आये थे। मंदिर परिसर में स्थित पीपल के वृक्ष के नीचे ही वो ध्यान मुद्रा में लेटे हुए थे। उनकी इस मुद्रा में उनका बायां पैर सामने की तरफ था। श्रीकृष्ण के पैर के तलवे में बना पदम का निशान ऐसे चमक रहा था, मानों किसी हिरण की आंख हो। इसे देखकर जरा नाम का एक बहेलिया भ्रम में आ गया और उसने हिरण का शिकार करने के लिए बाण चला दिया।
बहेलिया का विष बुझा बाण श्रीकृष्ण के तलवे को भेद गया। जरा जब नजदीक आ रहा था तो उसके भय का ठिकाना नहीं था। जिसे वह हरिण की आंख समझ रहा था, वह भगवान श्रीकृष्ण का पैर था। ग्लानि में जरा भगवान के सामने हाथ जोड़कर बैठ गया। वह श्रीकृष्ण से क्षमा मांगने लगा। लेकिन श्रीकृष्ण ने उसे समझाया कि यही नियति है। भगवान श्रीकृष्ण ने जरा से कहा कि अब उनका इस धरती से प्रस्थान करने का समय आ गया है और वह इसका एकमात्र कारण ही है। यह सत्य भी था क्योंकि श्रीकृष्ण इस संपूर्ण सृष्टि के स्वामी हैं, उनकी इच्छा के बिना भला क्या ही संभव हैं।
बाण लगने से लहूलुहान हुए भगवान श्रीकृष्ण भालका तीर्थ से थोड़ी दूर स्थित हिरन नदी पहुंचे, जो कि सोमनाथ से मात्र डेढ़ किमी की दूरी पर बहती है। नदी के किनारे पहुंच कर भगवान ने अपना मानव शरीर त्याग दिया और बैकुंठ धाम को चले गए। माना जाता है कि नदी के किनारे आज भी भगवान श्रीकृष्ण के चरणों के निशान मौजूद हैं। इस स्थान को देहोत्सर्ग तीर्थ के नाम से जाना जाता है। यह घटना द्वापर युग के अंत का संकेत थी। श्रीकृष्ण निजधाम प्रस्थान लीला के बारे में महाभारत, श्रीमद् भागवत, विष्णु पुराण और अन्य आध्यात्मिक पुस्तकों में उल्लेखित हैं।
1967 में हुई मूर्ति की स्थापना
भालका मंदिर का जीर्णोद्धार सोमनाथ ट्रस्ट ने करवाया और 1967 में भारत के उपप्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने यहां मूर्ति की स्थापना की। चूंकि बाण को भल्ल भी कहा जाता है, अतः इस स्थान का नाम भालका तीर्थ पड़ा। मंदिर सोमनाथ ट्रस्ट द्वारा संरक्षित और संचालित है।
कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग - भालका तीर्थ पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा राजकोट हैं, जो भालका तीर्थ से लगभग 190 किमी की दूरी पर हैं। एयरपोर्ट से आप टैक्सी या बस से जा सकते हैं।
रेल मार्ग - भालका तीर्थ पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन वेरावल स्टेशन है। यहां से भालका तीर्थ की दूरी मात्र 3.3 किमी है। यहां से आप टैक्सी या ऑटो के द्वारा पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग - भालका तीर्थ सड़क मार्ग से पहुंचना बहुत आसान है क्योंकि यह स्थान सोमनाथ से थोड़ी ही दूरी पर हैं। ये जगह सभी प्रमुख सड़क मार्गों से जुड़ी हुई हैं।
मंदिर का समय - सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक।