देवी आराधना के पावन पर्व नवरात्रि में नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा-उपासना से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं। वैसे तो देवी मां को अपने भक्तों के भाव की आकांक्षा होती है लेकिन फिर भी यदि भक्त नवरात्रि जैसे व्रत करते हैं तो इनका नियम काफी सख्त और कठोर माना गया है। इन्हीं में पहले दिन घटस्थापना का भी विधान है। आप में से ज्यादातर लोगों ने घटस्थापन की होगी या पूजन की शुरुआत में इस प्रक्रिया को देखा और सुना होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नवरात्र में घटस्थापना क्यों की जाती है और इसका क्या महत्व है? तो चलिए आज हम आपको बताते हैं घटस्थापना के विषय में सबकुछ भक्त वत्सल के नवरात्रि विशेषांक के इस लेख में….
नवरात्रि के समय ब्रह्मांड की सभी शक्तियों को एक घट अर्थात कलश में केन्द्रित करने के लिए उनका आह्वान करने और पूजन विधि से उन्हें सक्रिय करने की शास्त्र सम्मत विधी को घटस्थापना कहा जाता हैं।
इसे कलश स्थापना भी कहते हैं। यह मंगलमय कर्म शक्ति संचय, कार्य सिद्धि और वास्तु में उपस्थित कष्टदायक तरंगों को नष्ट करता है। हमारे शास्त्रों में कलश को संपूर्ण देवी-देवताओं का निवास स्थान माना गया है। इसलिए घटस्थापना नवरात्रि में बेहद जरूरी और शुभ है। घटस्थापना प्रतिपदा तिथि के शुरुआती समय में ही करना चाहिए।
सनातन धर्म में कलश को सुख- समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला और मंगल करने वाला माना गया है। इसके मुख में भगवान विष्णु, गले में रुद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास बताया गया है। इसलिए नवरात्रि के समय ब्रह्मांड में उपस्थित इन सर्व श्रेष्ठ शक्तियों का घट में आह्वान कर उन्हें मंत्रोचार और पूजन के द्वारा जाग्रत या सक्रिय किया जाता है। इससे घर की सभी विपदादायक तरंगें नष्ट हो जाती हैं। घर में सुख-शांति तथा समृद्धि बनी रहती है। घट या कलश में सभी देवी- देवताओं के आवाह्न के साथ चारों वेदों और पवित्र नदियों का भी आवाह्न किया जाता है।
पहले में एक मिट्टी के पात्र में जौ बोए जाते हैं और दूसरे में कलश स्थापना की जाती है।
कलश स्थापना के लिए अमृत मुहूर्त को सबसे उत्तम माना गया है। अगर अमृत मुहूर्त में घटस्थापना नहीं कर पाएं तो आप अभिजीत मुहूर्त में भी घटस्थापना कर सकते हैं।
घटस्थापना मंदिर के उत्तर-पूर्व दिशा में करनी चाहिए।
घटस्थापना के लिए शुभ नक्षत्र पुष्या, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद, हस्ता, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और पुनर्वसु हैं।
इस समय इस मंत्र का जाप करें -
“कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिता:
मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृता:।
कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा,
ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामवेदो अथर्वणा:
अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिता:।”
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