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मंगल कार्यों में नारियल क्यों फोड़ा जाता है

मंगल कार्यों में नारियल क्यों फोड़ा जाता है

हिन्दू धर्म में नारियल का क्यों है इतना महत्व, जानिए हर शुभ कार्य से पहले क्यों चढ़ाते हैं श्रीफल?


नारियल या श्रीफल हिंदू धर्म के सभी धार्मिक आयोजनों, अनुष्ठानों और पूजा पाठ की सामग्री का सबसे अहम हिस्सा है। कोई भी शुभ कार्य हो सबसे पहले नारियल चढ़ाने से ही उसका आरंभ किया जाता है। नारियल के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए तो पूजन सामग्री एकत्रित करने के समय सबसे पहले नारियल की याद आती है और सूची में भी सबसे पहले नारियल का ही नाम याद आता है। ऐसे में हमारे मन में सवाल उठता है कि आखिर नारियल का इतना महत्व क्यों है? तो चलिए भक्त वत्सल पर जानते हैं इसी प्रश्न का जवाब।

पहले क्यों फोड़ते हैं नारियल यह है पौराणिक कथा 


मान्यता है कि एक बार ऋषि विश्वामित्र ने इंद्र से नाराज होकर दूसरे स्वर्ग की रचना कर रहे थे पर दूसरे स्वर्ग की रचना से थोड़े असंतुष्ट थे। फिर उन्होंने पूरी सृष्टि ही दूसरी बनाने की ठान ली जिसमें उन्होंने मानव के रूप में नारियल का निर्माण किया। कहते हैं नारियल के खोल पर बाहर जो दो आँखें और एक मुख की रचना दिखाई देती है यह उसी का प्रतीक है। आगे चलकर हिन्दू धर्म में मौजूद मनुष्य और जानवरों की बलि की परम्परा को खत्म करने के लिए नारियल चढ़ाने की प्रथा शुरू की गई। नारियल फोड़ने का अर्थ स्वयं को अपने इष्ट देव को अर्पित कर देना है। यही कारण है कि सनातन संस्कृति में पूजा और मांगलिक कार्य के दौरान नारियल फोड़कर प्रसाद चढ़ाया जाता है। 

मान्यताएं यह भी है 


नारियल को संस्कृत में 'श्रीफल' कहा जाता है और श्री का अर्थ लक्ष्मी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, लक्ष्मी के बिना कोई भी शुभ काम पूर्ण नहीं होता है। इसलिए शुभ कार्यों में नारियल का इस्तेमाल अवश्य होता है।
सनातन संस्कृति में नारियल को एक पवित्र फल माना गया है। मान्यता है कि हमारे देवी देवताओं को नारियल का भोग अत्यंत प्रिय है। इसी लिए धार्मिक कार्यक्रमों में नारियल चढ़ाने की परंपरा प्राचीन काल से ही हैं। देवी देवताओं की पूजा, आराधना, गृह प्रवेश, शादी-विवाह से लेकर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े मांगलिक और धार्मिक कार्यक्रम में नारियल का प्रयोग होता है। यहां तक कि इसे श्रीफल यानी देवताओं का प्रिय फल का दर्जा प्राप्त है।

नारियल का पौराणिक महत्व कुछ ऐसे भी वर्णित है 


मान्यता है कि विष्णु भगवान जब पृथ्वी पर अवतरित हुए तो मां लक्ष्मी, नारियल का वृक्ष और कामधेनु उनके साथ थी। नारियल के पेड़ को कल्पवृक्ष भी कहा जाता है जिसमें त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास बताया गया है। दरअसल, हिंदू धर्म में ऋषि विश्वामित्र को नारियल का निर्माता माना जाता है। तभी तो नारियल को पवित्र फल माना गया है और नारियल सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक भी है। नारियल के पानी से घर की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है और यह आरोग्य भी प्रदान करता है। इसकी सख्त सतह काम में सफलता के लिए मेहनत करनी और अंदर का स्वादिष्ट नरम फल परिश्रम की परिणति का प्रतीक है।
 

नारियल के बारे में यह भी 


  • नारियल के अंदर पानी होता है जो बहुत पवित्र माना जाता है।
  • इसका पवित्र पानी जब चारों तरफ फैलता है तो नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं। 
  • नारियल भगवान गणेश का पसंदीदा फल है। भगवान शिव को भी नारियल बहुत प्रिय है।
  • नारियल तोड़ने का एक मतलब अहम तोड़ने से भी लगाया जाता है।
  • नारियल को इंसान के शरीर का प्रतीक भी माना गया है। जब इसे तोड़ते हैं तो इसका मतलब स्वयं को ब्रह्मांड में सम्मिलित करने से है।
  • नारियल में मौजूद तीन चिन्ह, भगवान शिव की आंखें मानी जाती हैं। 
  •  नारियल के पेड़ को संस्कृत में 'कल्पवृक्ष' भी कहा जाता है। 'कल्पवृक्ष' सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है। 


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