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हिन्दू धर्म में हर माह का अपना एक अलग महत्व और नाम होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का नौवां महीना अगहन कहलाता है। इसे मार्गशीर्ष मास भी कहा जाता है। इस दौरान किए गए स्नान, दान और पूजा से आत्मिक शुद्धि होती है। बल्कि, भगवान की कृपा भी प्राप्त होती है। इसलिए, अगहन मास को मार्गशीर्ष कहा जाता है और इसका महत्व सदियों से अटल है। पर क्या आपने कभी सोचा है कि अगहन मास को मार्गशीर्ष क्यों कहते हैं? इसके पीछे धर्म और ज्योतिष से जुड़े कई तथ्य और मान्यताएं हैं। तो आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार, मार्गशीर्ष भगवान श्री कृष्ण का एक रूप है। श्रीमद्भागवत गीता में स्वयं श्री कृष्ण ने कहा है, "मासानां मार्गशीर्षोऽहम्।" यानी, "मैं सभी मासों में मार्गशीर्ष हूं।" इसका अर्थ यह है कि मार्गशीर्ष मास को भगवान श्री कृष्ण का प्रिय माह माना जाता है। इस माह का संबंध ज्योतिषीय नक्षत्र मृगशिरा से भी है। 27 नक्षत्रों में से एक मृगशिरा नक्षत्र से युक्त पूर्णिमा इसी मास में आती है। इसी कारण इसे मार्गशीर्ष नाम दिया गया।
धार्मिक दृष्टिकोण से मार्गशीर्ष मास को पूजा-अर्चना और भक्ति का विशेष समय माना गया है। इस दौरान किए गए जप, तप, और दान-पुण्य का फल कई गुना अधिक होता है। श्री कृष्ण ने गोपियों से मार्गशीर्ष मास की महत्ता बताते हुए कहा था कि इस माह में यमुना नदी में स्नान करने से भगवान सहज ही प्रसन्न होते हैं।
मार्गशीर्ष मास में नदी स्नान का खास महत्व है। शास्त्रों के अनुसार इस दौरान किसी पवित्र नदी में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है। ध्यान रखने वाली बात है कि स्नान करते समय तुलसी की जड़ की मिट्टी और तुलसी के पत्तों को अवश्य उपयोग में लाना चाहिए। माना जाता है कि इससे प्रभु भी प्रसन्न होते हैं।
मार्गशीर्ष माह में दान-पुण्य और मंत्र जाप का फल अन्य महीनों की तुलना में अधिक शुभ होता है। कहा जाता है कि जो भक्त इस माह में भगवान श्री कृष्ण के मंत्र का जाप करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
ज्योतिष के अनुसार, मार्गशीर्ष माह में पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है। "मृग" का अर्थ हिरण और "शिरा" का अर्थ सिर होता है। मृगशिरा नक्षत्र चंचलता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। इस नक्षत्र का प्रभाव मार्गशीर्ष मास में धार्मिक कार्यों को और भी शुभ बना देता है।
मार्गशीर्ष मास में भगवान श्री कृष्ण की पूजा अनेक रूपों में की जाती है। भक्त इस मास में विशेष रूप से श्री कृष्ण के प्रिय मंत्रों का जाप करते हैं। साथ ही, दान और भक्ति से अर्जित पुण्य का फल उन्हें जीवन में सुख, शांति एवं समृद्धि प्रदान करता है।
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